राष्ट्रभाषा पर विचार कर लिया और रोमी विश्व में अपना सिक्का जो जमा लिया वह किसी के आँख मूंदने अथवा गाल बजाने से दूर नहीं हो सकता। वह खलीफा के घर में भी चल रहा है और हिंदुस्तान में भी । वह सरापने से मर नहीं सकता और जलाने से सरपत की भाँति और भी हराभरा होगा और बढ़ेगा। तो महात्मा गांधी कहते क्या हैं और मुसलिम देवता ( मुसलिम डिवाइन ) अल्लामा सैयद सुलैमान नदवी फरमाते क्या हैं ? यही न कि देशी राज हो और देशी भाषा हो। हो, परंतु पूछना तो यह है कि देशी राज और देशी भाषा के लिये किसी देशी हृद्य की भी कभी आवश्यकता पड़ती है वा नहीं ? सुनिए अल्लामा सैयद सुलैमान नदवी के उस्ताद अल्लामा शिबली नोमानी कहते क्या हैं । उनका दुखड़ा है- मोकरमी, तसलीम, मैं उर्दू व कूलर स्कीम कमेटी की शिरकत' की गरज से इलाहाबाद गया था मिस्टर बन ने चंद निहायत मुजिर २ तजवीजें उर्दू के हक में पेश की थीं। एक यह भी थी कि रामायन भाषा इंटरेंस के इम्तहान में लाजमी कर दी जाये । और उर्दू जो मदारिम में है वह ऐसी कर दी जाये कि हिंदी बन जाये । अजीब मंतिकी दलावल बड़े थे। पंडित सुंदरलाल वगैरह कमेटी के मेंबर थे। तीसरे जलसे में कामिल' फतेह हुई। तमाम तजवीजें उड़ गई। अगरचे अफसोस है कि मुसलमान मेंबरों ने कोई मदद मुझको न दी और देते क्या देने के काबिल भी न थे। ( दास्ताने तारीखे उर्दू, लक्ष्मीनारायन अग्रवाल, श्रागरा, सन् १९४१ ई०, पृष्ठ ६७६) १- साझे। २-- हानिकर । ३-अनिवार्य । ४-मदरसों । ५-तार्किक । ६-दलीलें । ७-गढ़े । ८-पूर्ण।
पृष्ठ:राष्ट्रभाषा पर विचार.pdf/२००
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