हिंदुस्थानी का भँवजाल २४७ मेरी प्रतिज्ञा है कि, भाषासंबंध से हिंदी उर्दू एक हैं अर्थात् हिंदुस्थान या भारतवर्ष में सर्वत्र बोली जानेवाली व समझी जानेवाली भाषा समस्त हिंदू मुसलमानों की एक भाषा है । एवं- फिर हम देखते हैं कि, उर्दू संसार में सिवा भारत के और कहीं नहीं बोली जाती ! तब तो उर्दू हिंद या भारत या हिंदुस्थान की भाषा हुई । जब हिंदुस्थान की भाषा हुई तो उसका असली नाम हिंदी होना चाहिए हिंद शब्द से संबंधसूचक तद्धित हिंदी बनता है न कि उर्दू । (तृतीय हिंदी साहित्य-सम्मेलन, कलकत्ता कार्यविवरण-दूसरा भाग, पृष्ठ ५६) भारती, हिंदी तथा हिंदुस्थानी को छोड़कर सरकार 'हिंदु- स्तानी' को क्यों चाहती है, इले आप जानें। हमें हिंदुस्थान' के प्रसंग में कहना यह है कि कांग्रेस अथवा राष्ट्रीय महासभा के जन्म के १ वर्ष पहले १ जनुवरी १८४' को 'फ्रेड्रिक पिकाटने भारतेंदु हरिश्चंद्र जी को लिखा था- खेद की बात है कि भाएका सारा प्रयत्न शिक्षा प्रचार करने के निमित्त अब तक सफल न हुया । और भारी खेद की बात है कि किसी स्वदेशी पुरुष से आपका हितकारक उद्योग व्यर्थ हो गया। राजा शिवप्रसाद बड़ा चतुर है। बीस बरस हुए उसने सोचा कि अंग्रेजी साइवों को कैसी कैसी शतें अगली लगती हैं उन बातों का प्रचलित करना चतुर लोगों का परम धर्म है। इसलिए बड़े चाव से उसने काव्य को और अपनी हिंदी भाषा को भी बिना लाज छोड़कर उर्दू के प्रचलित करने में बहुत उद्योग किया। उसके उपरांत उसने देखा कि हिंदी भाषा साल पर साल पूज्यतर होती जाती थी तब उसने उर्दू और हिंदी के परस्पर मिलाने का उद्योग किया । बहुदेरे अँगरेज़ लोग
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