राष्ट्रभाषा पर विचार भी चाहते हैं । निदान सम्मेलन को इसकी व्यवस्था अविलंब कर देनी चाहिए। ३-हिंदी का व्याकरण कुछ और भी ठौर-ठिकाने का बनना चाहिए और 'ने' तथा 'लिंग' पर उसमें सरल और सुबोध विचार होना चाहिए, इसकी भी कठिन माँग है। ४-- दक्षिण भारत ग्रंथ माला' की स्थापना होनी चाहिए। उचित तो यह होगा कि 'सम्मेलन' महात्मा गांधी के नाम पर स्मारक रूप में ऐसी ग्रंथमाला का प्रकाशन करे और इसमें अहिंदी देशभाषाओं के उच्च कोटि के ग्रंथों का प्रकाशन भिन्न भिन्न ढङ्ग से करे-- (क) नागरी अक्षरों में मूल कुछ व्याकरण के साथ (ख) नागरी अक्षरों में मूल तथा अनुवाद (ग) नागरी अक्षरों में अनुवाद जहाँ तहाँ टीका के साथ (घ) प्रत्येक देश का दर्पण हिंदी में जैसे कर्णाटक दर्पण, आंध्र दर्पण ५-विख्यात और रससिद्ध कवियों की जयंतियाँ मनाने की प्रेरणा दे और अपनी ओर से एक तालिका वितरित करे जिससे समस्त राष्ट्र को पता चले कि किस दिन किस कवि की जयंती होगी। कहीं अच्छा होगा, यदि उस दिन किसी अधिकारी विद्वान् का भाषण भी हिंदी में लिखित रूप में हो और फिर सबको एकत्र प्रकाशित करा दिया जाय । इस प्रकार प्रत्येक वर्ष एक नया ग्रंथ समस्त भारतीय साहित्य के प्रतीक के रूप के साथ में प्रस्तुत होगा। ६-सम्मेलन की रत्न-परीक्षा में साहित्य के परीक्षार्थी के लिये
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