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पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/११२

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पाकिस्तान की योजना देशके लिए आत्मघातक है 88 करेंगे तो विवश होकर उसे स्वीकार करना पड़ेगा । महात्माजीका ख्याल है कि मुसलमान स्वयं इस योजनाका विरोध करेगे । स्वराज्य पंचायतके क्या अधिकार होगे, कौनसे प्रश्नोका निर्णय केवल मुसलिम प्रतिनिधियोके हाथ मे होगा प्रादि वाते अभी तक साफ नही की गयी है । मेरी रायमे प्रत्येक प्रश्न मुसलिम प्रश्न नही बनाया जा सकता। हिन्दुस्तानकी एकता और अखण्डताका प्रश्न ऐसा प्रश्न नही है कि इसका निर्णय किसी अल्प समुदायके हाथमे छोड़ दिया जाय। इस प्रश्नका सम्बन्ध मुसलमानोके अतिरिक्त अल्प-समुदायोसे भी है । बहुसंख्यक समुदाय भी इस प्रश्नकी उपेक्षा नही कर सकता। ऐसी अवस्थामें इसका निर्णय स्वराज्य-पचायतले बहुमतके आधारपर ही होना चाहिये। मुसलमान पृथक राष्ट्र नहीं इतना ही कहना पर्याप्त न होगा, इसलिए हम इस प्रश्नकी मीमासा करेगे । धर्मके आधारपर राष्ट्र नहीं होते । राष्ट्रकी सवसे वडी पहचान भापा है । हिन्दुस्तानके मुसलमान एक भापा नहीं बोलते । वह प्रान्तोमे बँटे है और अपने-अपने प्रान्तकी भापा बोलते हैं । वगालके मुसलमान और तामिल मुसलमानोमे धर्मको छोडकर कोई समानता नही है । बंगालका मुसलमान वंगाली हिन्दूके कही ज्यादा नजदीक है । हिन्दू और मुसलमानकी नस्ल एक है। संस्कृतिमे भी काफी सम्मिश्रण है। मुसलमानोकी एक भापा है और हिन्दुओकी दूसरी ऐसी नही है । दोनो एक ही भापा बोलते है । भापाके आधारपर यदि राष्ट्र वनते हो तो कहना होगा कि भारतवर्पमे वंगाली, पजावी, सिन्धी, तेलगू गुजराती अादि राष्ट्र है । यदि राष्ट्रको आत्मनिर्णयका अधिकार दिया जाय तो इन विविध जातियोको यह अधिकार देना होगा न कि हिन्दुओ या मुसलमानोको । इस रीतिके अनुसार यदि पंजावके लोग अलग होना चाहे तो हो सकते है, किन्तु इसका फैसला वहुमतसे नही हो सकता; क्योकि प्रश्न असाधारण है। जवतक एक बहुत वडी तादाद इस मॉगका समर्थन न करे पृथक् होनेका अधिकार देना अनुचित होगा। रूसका उदाहरण इस सम्बन्धमे रूसका उदाहरण पेश किया जाता है, लेकिन हम भूल जाते है कि रूसके साम्राज्यमे कजक, उजवेग, वशकिर, तातार आदि भिन्न-भिन्न नस्ले थी जिनके देश अलग-अलग थे और जो जीतकर रूसी साम्राज्यमे दाखिल कर लिये गये थे और जिनपर जारका हर तरहका अत्याचार होता था। उनकी सस्कृतिको कुचल दिया गया था और उनकी कोई स्वतन्त्र सत्ता न थी। वह वरावर जारके विरुद्ध बगावत करते थे और उनमे साम्राज्यसे अलग होनेके लिए आन्दोलन चलते थे। ऐसी स्थितिमे लेनिनने इनको स्वभाग्य-निर्णयका अधिकार देना उचित समझा, लेकिन लेनिन साथ-साथ यह भी कहा करता था कि कर्तव्य तो एक साथ रहना बताता है । लेनिनके शब्द यह थे कि हम पृथक् होनेके विरुद्ध है, किन्तु पृथक् होनेका अधिकार देनेके पक्षमे है ।