पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१३०

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भारतकी स्वाधीनताका सवाल ११७ वैधानिक मनोवृत्ति प्रवल होने लगी। जनताकी हलचलसे उसको घबराहट होती थी। युद्धके प्रारम्भ होनेके बाद भी कोई खास तैयारी नही की गयी। दुनिया को यह दिखानेके लिए कि काग्रेस ब्रिटिश गवर्नमेण्टकी नैतिक सहायता देनेके लिए तैयार है यदि विश्वास हो कि यह लडाई लोकतन्त्रके लिए लड़ी जा रही है । काग्रेस इसी कोशिशमे लगी रही कि निटिश गवर्नमेण्टसे उसके इरादे साफ कराये जाये । युद्धका उद्देश्य क्या है और सुलहकी शक्ल क्या होगी यह सवाल बार-बार हुकूमतसे पूछे गये, पर उसने इन सवालोका जवाव देनेसे गुरेज किया। वह जवाब क्यो देने लगी; दूधका जला छांछ फूंक-फूंक कर पीता है । सन् १९१४ मे जो यूरोपीय युद्ध हुअा था उसमे मित्रराष्ट्रोने बड़ी लम्बी-चौड़ी वातें की थी और लोकतन्त्रकी दुहाई देकर संसारकी नैतिक सहायता प्राप्त की थी पर विजयी होनेपर वह अपने वादोको भूल गये । युद्धके दौरानमे लोगोको अाशा बंध गयी थी कि युद्धके वाद नये आदर्शोके अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध स्थापित होगे और स्वेच्छा- चारिताका अन्त और लोकतन्त्रकी स्थापना होगी, पर जव इन आशाओंपर पानी फिर गया तव जनतामे उत्तेजना और अशान्ति उत्पन्न हुई और क्रान्तियोंका सिलसिला शुरू हुआ। इस अनुभवसे लाभ उठाकर ब्रिटिश गवर्नमेण्ट इस बार उस भूलको दोहराना नही चाहती, इसलिए वह युद्धके उद्देश्योका स्पष्टीकरण करनेको तैयार नही है । कुछ अरसेतक इन्तजार करनेके बाद जब वायसरायके वक्तव्यसे स्पष्ट हो गया कि ब्रिटिश गवर्नमेण्ट गोल बाते करनेके सिवाय कुछ करना नही चाहती तव काग्रेसने विवश होकर मन्त्रियोको वापस बुला लिया, पर साथ-साथ यह भी साफ कर दिया कि वह सम्मानपूर्वक समझौतेकी कोशिशोको जारी रखेगी। महात्माजीका शुरूमे यह ख्याल था कि ब्रिटिश हुकूमतकी जन-धनसे सहायता न कर उसकी नैतिक सहायता करनी चाहिये । लेकिन वकिंग-कमेटीका एक भी सदस्य इस ख्यालका न था, इसलिए महात्माजीने अपनी रायमे कुछ तवदीली की । जव गवर्नमेण्टने अपने उद्देष्श्यका स्पष्टीकरण नही किया और कोई सन्तोपजनक उत्तर नही दिया तव महात्माजीने मन्त्रिपद छोड़नेका परामर्श दिया और रामगढ़मे नेतृत्व भी ग्रहण किया। रामगढ काग्रेसमे पूर्ण स्वाधीनताकी माँग दुहरायी गयी और यह साफ कर दिया गया कि 'डोमिनियन स्टेट्स' (औपनिवेशिक स्वराज्य) उसको स्वीकार नहीं होगा। यह भी घोपणा की गयी कि यह युद्ध साम्राज्यवादी युद्ध है और कांग्रेसका दूसरा कदम सत्याग्रह होगा। महात्माजीने अपने भाषणमे सामूहिक सत्याग्रह करनेका विचार प्रकट किया, लेकिन यह भी साफ कर दिया कि जबतक देश तैयार नही हो जाता तबतक वह कुछ नही करेगे । उन्होने रचनात्मक कार्यक्रम तथा अनुशासनपर जोर दिया। उनके आदेशसे काग्रेस-कमेटियां सत्याग्रह कमेटियोमे तबदील हो गयी और रचनात्मक कार्यक्रम कार्यान्वित किया जाने लगा। जिनको इस कार्यक्रमके प्रभावशाली होनेमे विश्वास नही था वह भी इसमे इस विचारसे शरीक हुए कि विना इन शर्तोंके पूरा . किये सत्याग्रहके शुरू होनेकी कोई सम्भावना नहीं है। कोई प्रान्तीय कगेटी अपने कार्यक्रम- को रचनात्मक कार्यतक सीमित रखनेके लिए वाध्य न थी । उसको इसका पूरा अधिकार था कि वह रचनात्मक कामके साथ अन्य कामोको भी जोडे, यदि वह काम कांग्रेसके सिद्धान्त