पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१३२

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भारतको स्वाधीनताका सवाल ११६ गवर्नमेण्ट यदि समझौता करेगी तो इसी शर्तपर करेगी कि कांग्रेस लड़ाईमें उसकी मदद करे जिसके लिए गाधीजी तैयार न थे। इस तरह पूनामे समझौतेका प्रस्ताव पास हुआ । लेकिन वायसरायने काग्रेसका प्रस्ताव मजूर नही किया । अब सत्याग्रह शुरू करनेके सिवाय और कोई दूसरा चारा नही था । वर्किंग कमेटी गांधीजीको फिर कांग्रेसमे लायी और उनके सन्तोपके लिए अहिंसाकी नयी व्याख्याको स्वीकार किया। गाधीजीपर गवर्नमेण्टकी वेरुखीका बुरा प्रभाव पड़ा और उन्होने किसी-न-किसी शक्लमे सत्याग्रह करनेका निश्चय किया। गाधीजी गवर्नमेण्टको परेशान भी नही करना चाहते थे और काग्रेसको जिन्दा रखना तथा गवर्नमेण्टका जवाब देना भी उनके लिए जरूरी था, इसलिए उन्होने व्यक्तिगत सत्याग्रहका रास्ता निकाला और नागरिक स्वतन्त्रताका सवाल उठाया । महात्माजी अपने सिद्धान्तके अनुसार लडाईके दौरानमे समझौता नहीं करते, लेकिन दूसरे दक्षिणपक्षके नेता समझौते के लिए ही सत्याग्रह कर रहे है उनके बयानोसे यह साफ है। जनता भी यही समझती है। लोगोका ख्याल है कि अगर गवर्नमेण्ट समझौतेके लिए तैयार हो जायगी तो काग्रेसके नेता महात्माजीपर दवाव डालेगे कि समझौतेके रास्तेमे वह सहुलियत पैदा करे और यदि उनका सिद्धान्त इसे गवारा नही करता तो वह कृपया एक बार फिर पृथक हो जायँ और उनको सौदा करने दे । समझौतेका प्रयास सफल न होने- पर ही सत्याग्रहका उपक्रम हुआ है। इससे यह धारणा और पुष्ट होती है । नेतृत्वका अधिकांश भाग समझौता ही चाहता है । वह क्रान्तिकी छायासे घवराता है। उससे यह आशा अब नही रह गयी है कि वह रामगढके प्रस्तावको कार्यान्वित करेगा। यदि महात्माजीके कारण युद्धके दौरानमे समझौता न हो सका तो युद्धके वाद जव विधानके प्रश्नपर फिरसे विचार होगा तो हमारे नेता फिर समझौतेकी वातचीत चलावेगे। काग्रेसके लिए सबसे बड़ा खतरा यही है । मन्त्रिपद ग्रहण कर हमने अपने लिए एक मुसीबत बुला ली । वैधानिक मनोवृत्तिको तो उत्तेजना मिली ही जिसकी वजहसे अवसरवादियोको काग्रेसमे घुसनेका मौका मिला साथ साथ मुसलिम लीगका भी विरोध वढ गया और हिन्दू-मुसलिम प्रश्नने भयंकर रूप धारण कर लिया। राज्यशक्ति हासिल करनेके लिए किस किस्मकी तैयारी होनी चाहिये यह भी हम नही जानते । पुराने ढंगसे ही अब हम भी काम करते है और कांग्रेसको एक नये साँचेमे ढालनेकी तरफ हमारा ध्यान नही है। इस प्रश्नपर हम किसी दूसरे लेखमे विचार करेगे । इस लेखमे तो हम केवल एक वर्षका हिसाव दे रहे है । काग्रेसके अधिकारियोने कोई खास तैयारी नही की इसका उल्लेख हम ऊपर कर चुके है । अव जरा वामपक्षकी भी कथा सुनिये । पहले तो वामपक्षमे कोई एकता नही है वह कई टुकडोमे बँटा हुआ है । यह हालत केवल हमारे ही देशमे नही है, किन्तु सारे ससारमे वामपक्षके टुकडे-टुकडे हो गये है । दलोके भीतर भी कही-कही उपदल वन गये है । इस परिस्थितिके बुनियादी कारणोमे जानेका यह मौका नही है किन्तु इसकी वास्तविकतासे इनकार नही किया जा सकता। भारतवर्पमे वामपक्षके अन्तर्गत कई दल है। इस समय इनमेसे कुछकी राहे भी अलग हो गयी है । काम करनेका तरीका तो भिन्न था ही।