पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१६

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पहला अध्याय भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनका इतिहास बहुत प्राचीनकालसे भारतवर्पसे विदेशोसे व्यापार हुआ करता था। यह व्यापार स्थल-मार्ग और जल-मार्ग दोनोसे होता था। इन मार्गोपर एकाधिकार प्राप्त करनेके लिए विविध राष्ट्रोमे समय-समयपर संघर्प हुआ करता था । जब इस्लामका उदय हुआ और अरब, फारस, मिस्र और मध्य एशियाके विविध देशोमे इस्लामका प्रसार हुआ, तव धीरे-धीरे इन मार्गोपर मुसलमानोका अधिकार हो गया और भारतका व्यापार अरव-निवासियोके हाथमे चला गया । अफ्रीकाके पूर्वी किनारेसे लेकर चीन-समुद्रतक समुद्र-तटपर अरव व्यापारियोकी कोठियाँ स्थापित हो गयी। यूरोपमे भारतका जो माल जाता था वह इटलीके दो नगर-जिनोमा और वेनिससे जाता था। ये नगर भारतीय व्यापारसे मालामाल हो गये । वे भारतका माल कुस्तुन्तुनियाकी मण्डीमे खरीदते थे। इन नगरोकी धन-समृद्धिको देखकर यूरोपके अन्य राष्ट्रोको भारतीय व्यापारसे लाभ उठानेकी प्रबल इच्छा उत्पन्न हुई, पर व्यापारके मार्गोपर मुसलमान राष्ट्रोका अधिकार होनेके कारण वे अपनी इस इच्छाकी पूर्तिमे सफल न हो सके । बहुत प्राचीनकालसे यूरोपके लोगोका अनुमान था कि अफ्रीका होकर भारतवर्षतक समुद्र-द्वारा पहुँचनेका कोई-न-कोई मार्ग अवश्य है । चौदहवी शताब्दीमे यूरोपमे एक नये युगका प्रारम्भ हुआ । नये-नये भौगोलिक प्रदेशोकी खोज आरम्भ हुई । कोलम्बसने सन् १४६२ ईसवीमे अमेरिकाका पता लगाया और यह प्रमाणित कर दिया कि अटलाण्टिकके उस पार भी भूमि है । पुर्तगालकी अोरसे बहुत दिनोसे भारतवर्षके आनेके मार्गका पता लगाया जा रहा था । अन्तमे, अनेक वर्षोंके प्रयासके अनन्तर सन् १४९८ ई० मे वास्को- डिगामा शुभाशा अन्तरीपको पार कर अफ्रीकाके पूर्वी किनारेपर आया; और वहाँसे एक गुजराती नियामकको लेकर मालाबारमे कालीकट पहुँचा । पुर्तगालवासियोने धीरे-धीरे पूर्वीय व्यापारको अरबके व्यापारियोसे छीन लिया। इस व्यापारसे पुर्तगालकी बहुत श्री-वृद्धि हुई। देखा-देखी डच, अग्रेज और फासीसियोने भी भारतसे व्यापार करना शुरू किया। इन विदेशी व्यापारियोमे भारतके लिए आपसमे प्रतिद्वन्द्विता चलती थी और इनमेसे हर एकका यह इरादा था कि दूसरोको हटाकर अपना अक्षुण्ण स्थापित करे । व्यापारकी रक्षा तथा वृद्धिके लिए इनको यह आवश्यक प्रतीत हुआ कि अपनी राजनीतिक सत्ता कायम करे । यह सघर्प वहुत दिनोतक चलता रहा और अग्रेजोने अपने प्रतिद्वन्द्वियोपर विजय प्राप्त की और सन् १७६३ के बादसे उनका कोई प्रबल प्रतिद्वन्द्वी नहीं रह गया । इस वीचमे अंग्रेजोने कुछ प्रदेश भी हस्तगत कर लिये थे और बङ्गाल, विहार, उड़ीसा और कर्नाटकमे जो नवाब राज्य करते थे वे अग्रेजोके अधिकार