पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/१७६

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संयुक्त मोर्चा और भारतीय कम्युनिस्ट १६३ स्वयंसेवकोंमे । हमको निस्सन्देह किसान सभाको काग्रेसका पुछल्ला बननेसे रोकना चाहिये, पर यह काम होशियारीसे होना चाहिये ! हमे काग्रेसकी नीति और उसके श्रेणी आधारको खोलकर वता देना चाहिये "। यह उद्धरण भी काग्रेसको कमजोर करने और अन्य स्थानोको मजबूत बनानेकी नीतिकी ओर इशारा करता है। दत्त और ब्रेडलेका लेख कुछ दिनो बाद कामरेड दत्त और ब्रैडलेका लेख प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक था 'हिन्दोस्तानमे साम्राज्यविरोधी जनमोर्चा ।" यह लेख बडे मार्केका था। इसमे प्रथम वार कम्युनिस्टोद्वारा स्वीकृत किया गया था कि कांग्रेस अपने संगठन और कार्यक्रममे कुछ और परिवर्तन कर साम्राज्यविरोधी जनमोर्चा बन सकती है । हमे वस्तुसे काम है, न कि नामसे । किन्तु हमे यह मानना होगा कि प्राजकी हालतमे काग्रेस अभी सयुक्त मोर्चा नही बन पायी है। उसके विधानमे अब भी जनताके कई अंश छूट जाते है । उसका प्रोग्राम अभी पूरी तरह साफ-साफ राष्ट्रीय सघर्षका प्रोग्राम नही है। उसका नेतृत्व भी अभी ऐसा नही है। जनताकी निहित शक्तियोका उद्बोधन करनेके वजाय वह उनपर "ब्रेक' का काम करता है । जरूरत इस वातकी है कि काग्रेसके द्वारा जो एकता सिद्ध हो चुकी है उसमे किसी प्रकारकी कमी किये विना उसका अधिक विस्तार किया जाय और उसके सगठन और नेतृत्वको एक नये स्तरमे ले जानेकी चेष्टा की जाय । .... ..इसलिए हमे पहले काग्रेसका सम्बन्ध अन्य जनसस्थाअोके साथ जोड़ना चाहिये, काग्रेसके विधानको बदलवानेकी कोशिश होनी चाहिये और सामूहिक सम्बन्धकी मॉग पेश करनी चाहिये। जब तक यह कार्य सिद्ध नही होता तबतक काग्रेस कमेटी, ट्रेड यूनियन, किसान-सभा, युवकसघ, समाजवादी समुदाय तथा अन्य साम्राज्यविरोधी सगठनोकी सम्मिलित सस्थाएँ जगह-जगह कायम करनी चाहिये।" इस लेखमे आगे चलकर इस बातपर जोर दिया गया है कि पहले वामपक्षकी शक्तियोमें एकता स्थापित होनी चाहिये और वही इस सयुक्त मोर्चेकी जान होगी। मोर्चे का प्रधान नारा “स्वराज्य पचायत" ( Constituent Assembly ) होगा । कुछ दिन पहले तक यह नारा पूंजीवादका नारा कहकर वदनाम किया जाता था। अब यही नारा सयुक्त मोर्चेका मुख्य नारा बन गया ! जनमोर्चेका स्वरूप इस लेखसे कम्युनिस्टोमे बड़ी खलबली मची, क्योकि अवतक जो कुछ उनकी ओरसे कहा या लिखा गया था उस सवको यह लेख काटता था। काफी समयतक इस सम्बन्धमे वाद-विवाद चलता रहा । अन्तमे इस लेखके प्रकाशनके एक वर्ष वाद मार्च सन् १९३७ मे 'पोलिट व्यूरो' ने इसके समर्थनमे एक वक्तव्य निकाला। इसमे इस मोर्चेका नया नामकरण हुआ। अब इसे संयुक्त राष्ट्रीय मोर्चा कहने लगे। इस मोर्चेके श्रेणी आधारका जिक्र