पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२३८

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पटना अधिवेशन' २२३ यह समझानेमे कि हमने यह कदम क्यो उठाया, बडी कठिनाइयोका सामना करना पड़ा। जनतामे फैला हुआ बहुत-सा भ्रम इस प्रयत्नसे दूर हुआ । किन्तु फिर भी बहुतसे लोग हमारे विरोधियोके भुलावेमे आ गये और बहुत दिनोतक आश्वस्त नहीं हो सके। प्रारम्भमे हमारी प्रतिष्ठाको एक धक्का लगा। हमारी नीयतपर तरह-तरहके आक्षेप किये गये। कहा गया कि हमलोग असन्तुष्ट पद-लोभी है जो अतृप्तिके कारण विरोध- पक्षके नये रूपमे सामने आये है । युक्तप्रान्तीय धारासभाके उपनिर्वाचनोमे राजनीतिक प्रश्नोपर पर्दा डाला गया । अप्रासगिक प्रश्नोको उस्थित करके और जनताकी धार्मिक भावनाओको उद्बुद्ध करके निर्वाचकोको भ्रममे डालनेकी काग्रेसजनोने पूरी चेष्टा की। जनताकी तर्कशक्ति और बुद्धिके स्थानपर परम्परा-जनित विश्वासो, भावनाप्रो और रूढियोका उद्बोधन किया गया । व्याख्यान-मंचके हथकण्डोका प्रयोग किया गया और 'धर्म तथा सस्कृतिपर विपत्ति' के नारे लगाये गये । काग्रेसी उम्मेदवारोके पक्षमे गाधीजीकी आत्माका बार-बार आह्वान किया गया। निर्वाचकोको प्रभावित करनेके लिए शासन-यन्त्रका प्रयोग किया गया और अनेक भ्रष्टाचारोका आश्रय लिया गया। इसके बाद यदि चुनावमे हमारी गहरी हार हुई तो कोई आश्चर्यकी बात नही । यह सच है कि इन उपचुनावोके परिणामस्वरूप हमारे साथियोको एक गहरा धक्का लगा, किन्तु यह भी सच है कि वे बहुत जल्द इसके प्रभावोसे मुक्त हो गये । जनताकी प्रतिक्रिया विभिन्न प्रकारकी हुई। कुछ लोगोने वैधानिक तरीकोमे विश्वास ही खो दिया, कुछकी यह राय थी कि मतदानका तरीका बदलना चाहिये और साथ ही कुछ ऐसे भी थे जिन्होने सोशलिस्ट पार्टीकी शक्तिमे विश्वास खो दिया। पहले उन्होने पार्टीकी शक्ति और उसके प्रभावके सम्बन्धमे अतिरजित धारणा बना ली थी। ऐसी ही धारणा सोशलिस्ट पार्टीके, विशेषकर युक्तप्रान्तके, कार्यकर्तामोकी थी। किन्तु उन्हे यह देखकर बडा धक्का लगा कि परिणाम उनकी आशा और अनुमानके विपरीत हुआ । उनका अनुमान गलत सिद्ध हुआ, क्योकि उन्होने स्थितिके एक ही अगको अत्यधिक महत्त्व दिया था, अर्थात् काग्रेससे जनताके बढते हुए असन्तोष और अलगावको । सोशलिस्ट पार्टीको संगठित होनेका समय भी नही मिला था कि चुनावकी घोषणा हो गयी। मै चुनाव-सम्बन्धी असफलताका मुख्य कारण कार्यकर्तायोकी कमी और चुनावके सगठनात्मक कार्यकी अनुभवहीनताको समझता हूँ। यद्यपि खोयी हुई शक्ति धीरे-धीरे पुनः प्राप्त की जा रही है और स्थितिमे बहुत कुछ सुधार हुआ है, जैसा कि टाउन एरियाके चुनावो और बम्बईमे कारपोरेशन तथा असेम्बलीके उपचुनावोके परिणामसे प्रकट होता है फिर भी इन दोनो त्रुटियोकी पूर्ति नही हुई और वे अब भी हमें परेशान कर रही है । मैं समझता हूँ कि जबतक ये दोनो कारण बने रहेगे, हमारी गति तेज नही हो सकती। मुझे इस बातमे किञ्चिन्मात्र सन्देह नही है कि देशकी स्थिति पार्टीके अत्यन्त अनुकूल है और यदि हम अवसरसे लाभ उठाना जानते हो तो हम सरलतापूर्वक बडी सफलताएँ प्राप्त कर सकते है । यो भी चुनाव- सम्बन्धी सारी वातोका हिसाब लगानेपर मेरा विश्लेषण इतना निराशाजनक नही है जितना कि वह ऊपरसे दिखायी देता है । सब प्रकारकी प्रारम्भिक कठिनाइयाँ होते हुए