पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२५

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१२ राष्ट्रीयता और समाजवाद करनेकी योग्यता अभी नही रखते और इसीलिए वे भारत और इङ्गलण्डके सम्बन्धको दृढ़ बनानेके लिए परम उत्सुक है । काग्रेसके नेताग्रोको राजभक्त होनेका वडा गर्व था। लार्ड लिटनके समयमे जव 'वर्नाक्युलर प्रेस ऐक्ट' पास हुआ था तब बनर्जी महागयने यह कहकर उसका विरोध किया था कि इससे भारतीयोकी राजभक्तिपर धव्या लगता है। उन्होने रानी विक्टोरिया तथा इङ्गलैण्डके राजनीतिज्ञोंके सन्देश और वक्तृतानोसे उद्धरण देकर इस बातको प्रमाणित करनेकी चेप्टा की थी कि भारतीयोकी राजभक्ति असन्दिग्ध है। ब्रिटिश शासकोकी घोपणाग्रोपर उनका वडा विश्वास था और वे सदा अपने समर्थनमे इनको पेश किया करते थे। धीरे-धीरे उनकी मोह-निद्रा टूटने लगी और वे वास्तविक स्थितिको समझने लगे। लार्ड रिपनके शासनकालके ठीक बाद ही काग्रेसका जन्म हुआ था। लार्ड रिपन एक लोकप्रिय शासक थे । भारतीयोका पक्ष लेकर वह अग्रेजोमे बहुत वदनाम हो गये थे। स्थानीय स्वायत्त-शासनकी नीव उन्होने डाली थी। कांग्रेसकी स्थापनामें लार्ड डफरिनकी भी सम्मति थी। एक अंग्रेज महागयने ही काग्रेसको जन्म दिया था। जिस स्थितिमें काग्रेसकी स्थापना हुई वह अंग्रेजोके वहुत अनुकूल थी। सरकारको सहानुभूतिको देखकर उनको सहज ही विश्वास होता था कि भारतीय सरकार शिक्षित समुदायके उद्देश्योसे सहानुभूति रखती है । जव इलवर्ट बिलका घोर विरोध एंग्लो-इण्डियन समुदायने किया तो भारतमे रहनेवाले अग्नेज व्यापारी और सम्पादकोसे उनको कोई अाशा न रही। आगे चलकर जब सरकारने काग्रेसका विरोध करना शुरू किया तव उनकी यह भी धारणा होने लगी कि भारतीय सरकारसे हमको न्यायकी आशा न रखनी चाहिये । काग्रेस प्रतिवर्ष जिन प्रस्तावोको पास करती थी उनका कोई भी प्रभाव भारतीय सरकारपर नही पड़ता था। उनकी एक साधारण मांग भी पूरी न की जाती थी। काग्रेस चाहती थी कि फौजका खर्च घटा दिया जाय, भारतकी गरीवीके कारणोका अनुसन्धान किया जाय, भारतमे भी सिविल सर्विसकी परीक्षाका प्रबन्ध हो, नमक-कर घटाया जाय, व्यवस्थापक सभाग्रोके सदस्योकी सख्यामे वृद्धि की जाय, नाम- जदगीके साथ-साथ चुनावका क्रम भी चलाया जाय और इन सभायोके सदस्योको सरकारसे प्रश्न पूछने तथा बजटपर वाद-विवाद करनेका अधिकार दिया जाय । चुंकि वे एंग्लो- इण्डियनोको भारतवासियोका विरोधी समझते थे, इसलिए कांग्रेसने यह भी प्रस्ताव किया कि इण्डिया-कौसिल तोड दी जाय, पर इन प्रस्तावोमेसे एक भी प्रस्ताव स्वीकृत न हुया । सन् १८६२ के पहले शासन-सम्वन्धी सुधार भी नहीं हुए थे और सन् १८६२ मे जो सुधार किये गये थे वह काग्रेसकी माँगसे कही कम थे। भारतीय सरकारके रवैयेको देखकर सन् १८८६ मे काग्रेसके नेतानोने यह निश्चय किया कि इङ्गलैण्डमे बड़े पैमानेपर आन्दोलन करना चाहिये । इङ्गलैण्ड-निवासियोसे उनको न्यायकी श्राशा थी । सन् १८८६ मे इङ्गलैण्डमे काग्रेसकी ब्रिटिश कमेटी कायम की गयी । वादको 'इण्डिया पार्ल- मेण्टरी कमेटी'का संगठन किया गया और 'इण्डिया' नामक पन प्रकाशित किया गया । लेकिन धीरे-धीरे कुछ लोग इस विचारके होने लगे कि केवल वक्तृतानो और प्रस्तावोसे कुछ होनेका नही है । धीरे-धीरे ब्रिटिश सरकारपरसे विश्वास उठने लगा और इस ध्रुव