गाँवोमें शाषितोका सयुक्त मोर्चा कायम हो २५३ पक्षमें है लेकिन वह गरीब किसानोको जिनके पास फाजिल गल्ला नही है राष्ट्रीय संकटके नामपर शोषित होने नहीं दे सकती । शहरकी भलाईके लिए गाँवका युगोसे शोषण किया जा रहा है और अब वक्त आ गया है कि गांव और शहरके भेदको मिटा दिया जाय । सोशलिस्टो और कम्युनिस्टोके विश्वासका यही आधार है और हमलोग अपने प्रति ईमानदार नही होगे अगर हमलोगोने वसूली-योजनाके उन हिस्सोका विरोध नहीं किया जिसके मुताबिक नौकरशाहोकी सुविधा लिए गरीब किसानोको अपने थोड़ेसे अन्नसे हिस्सा बँटानेको मजबूर किया जाता है । प्रदर्शनका अर्थ समझो मैं पूरी जिम्मेदारीके साथ यह वयान देता हूँ कि जो किसान १५) या उसके आसपास तककी सालाना लगान देते है उनके पास सरकारको देनेके लिए अतिरिक्त गल्ला नही है । मैंने सरकारी आँकडोका अध्ययन नही किया है जिसे मैं जानता हूँ कि किसी भी सिद्धान्तके अनुकूल बनाया जा सकता है, लेकिन मैं अपने व्यक्तिगत ज्ञान और अनुभवसे उपयुक्त बातें कह रहा हूँ। मैं अवधके किसानोको काफी करीबसे जाननेका दावा करता हूँ और साथ ही मैंने गाँवके कुछ अहम सवालोका अध्ययन भी किया है। मेरे बयानकी सत्यताको जाननेके लिए केवल आसपासके गाँवोमे जानेकी जरूरत है। फिर, मैं यह समझ नही सकता कि जो किसान विल्कुल ही कोई फसल नही उपजाते है उन्हें खुले बाजारसे अन्न खरीदकर सरकारको देनेके लिए क्यो मजबूर किया जाय । इसके साथ-साथ यह तो होना ही चाहिये कि जिस इलाकेमे वर्षाकी कमी या ज्यादा या पत्थर पड़नेके कारण फसल खराब हुई है वहाँसे वसूली नही करनेकी व्यवस्था की जाय । मैं चाहूँगा कि लखनऊमे जो प्रभावशाली प्रदर्शन हुआ, जैसा लखनऊके हालके इतिहासमे नही हुआ है, उससे खाद्य मन्त्री सही नतीजा निकाले और यह कहकर कि बुरे मतलबसे प्रदर्शनका आयोजन किया गया था नजर-अन्दाज नही करें। ये सुझाव बड़े अच्छे ख्यालसे दिये गये है ताकि गरीब किसानोके प्रति अन्याय नही हो जिसके हितकी रक्षा हर हालतमे होनी ही चाहिये । गांवोंमें शोषितोंका संयुक्त मोर्चा कायम हो' यद्यपि प्रान्तमें गाँव-पंचायतोंका संगठन जिस रूपमे किया गया है उसमें बहुतसी बुटियां है, किन्तु पंचायतोको जो भी अधिकार मिले हैं उनके जरिये बहुत कुछ काम हो सकेगा। १. पंच-सम्मेलनके प्रतिनिधियोंके कर्तव्यके सम्बन्धमें २६ मईको सम्मेलनमे दिया गया भाषण
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