पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२७८

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चौथा अध्याय समाजवादका लक्ष्य समाजवादका ध्येय वर्गविहीन समाजकी स्थापना है। समाजवाद प्रचलित समाजका इस प्रकारका संगठन करना चाहता है कि वर्तमान परस्पर-विरोधी स्वार्थोवाले शोपक और शोषित, पीडक और पीडित वर्गोका अन्त हो जाय; वह सहयोगके आधारपर सगठित व्यक्तियोंका ऐसा समूह बन जाय जिसमे एक सदस्यकी उन्नतिका अर्थ स्वभावत दूसरे सदस्यकी उन्नति हो और वह मिलकर सामूहिक रूपसे परस्पर उन्नति करते हुए जीवन व्यतीत कर सके। संसारकी आजादी मानव-इतिहासके प्रारम्भसे अवतक समाजमे शोषक और शोपित वर्गोका सघर्ष चलता रहा है । मनुष्य सामाजिक प्रगतिके नियमोका दास बनकर कार्य करता रहा है; वह समाजके विकासकी दिशा बोधपूर्वक निर्धारित करनेमे असमर्थ रहा है । समाजवाद ऐसे शोपणमुक्त और स्वतन्त्र समाजकी रचना करना चाहता है जिसमे मनुष्य अपनी इस असमर्थताके दायरेसे ऊपर उठ सके और सामाजिक विकासका नियन्त्रण कर सके । कार्ल मासके शब्दोमे 'समाजवाद मनुष्यको विवशताके क्षेत्रसे हटाकर उसे स्वाधीनताके राज्यमे ( from the realm of necessity to the realm of freedom ) FETT चाहता है।" समाजवाद ससारको आजाद करना चाहता है, व्यक्तित्वके विकासमे रुकावट डालने- वाले सामाजिक बन्धनोसे उसे छुटकारा दिलाना चाहता है । शोपणमुक्त समाजकी रचना करके, मौजूदा समाजकी प्रचलित दासता, विषमता और असहिष्णुताको सदाके लिए दूर करके, समाजवाद स्वतन्त्रता, समता और भ्रातृभावकी वास्तविक स्थापना करना चाहता है । स्वतन्त्रता, समता और भ्रातृभावके आदर्श तो पुराने ही है । प्राचीन कालमे सामाजिक स्वतन्त्रताके जो आन्दोलन समय-समयपर होते रहे है उनकी पताकापर ये ही आदर्श वाक्य अकित रहे है । यूरोपको कायापलट करनेवाली महान् राज्यक्रान्ति- फ्रान्सीसी राज्यक्रान्ति-का भी मूलमन्त्र यही था लेकिन हम आज देखते है कि फ्रान्सीसी राज्यक्रान्तिके आदर्शोकी सिद्धि होनेके बाद भी विपमता दूर नही हुई है । सच तो यह है कि ये व्याधियाँ समाजमे पहलेकी अपेक्षा आज और भी बढ गयी है। फ्रांसकी राज्यक्रान्ति यहाँपर कुछ लोग यह प्रश्न कर सकते है कि जब दासता, विषमता और असहिष्णुताके भाव समाजमे आज विद्यमान है तो हम यह कैसे कह सकते है कि फ्रान्सकी राज्यक्रान्ति