समाजवादका लक्ष्य २६५ लाखोंकी आवादीपर राज्य करनेवाले दो सौ धनकुवेरोके परिवार है । यही हालत हर जगह पायी जाती है । हर राष्ट्र स्पष्टत. दो मुख्य शोपक और शोपित भागोमें बँट गया है । एक ओर तो लक्ष्मीके लाड़ले मुट्ठीभर पूंजीपति है जो शानदार महलोमे रहते है, जिन्हे सभ्यताकी सभी विभूतियोका सुख प्राप्त है, जो समाजके भाग्यविधाता समझे जाते है-जिनके अधिकारमे उत्पादन, विनिमय और वितरणके सभी साधन है । दूसरी ओर शोषित वर्गके वे बहुसख्यक अभागे लोग है, जिनकी एकमात्र पूंजी उनकी श्रमशक्ति है, जो लोग अपने परिश्रमसे समाजकी सभी वस्तुएँ पैदा करते है पर जिनको न पेट भरनेको अन्न और न तन ढकनेको कपडे है-जिनका कार्य अमीर पूंजीपतियोकी कृपापर निर्भर रहकर रात-दिन शोषणकी चक्कीम पिसते रहना ही है । यो तो कहनेको कानूनकी निगाहमे शोषक और शोपित दोनो ही वर्गके लोग वरावर है, कानून सभीके साथ समान रूपसे न्याय करता है, लेकिन हममेसे हर कोई इस वातको जानता है कि गरीबोके साथ होनेवाला न्याय कितना पक्षपातसे भरा होता है और न्यायालयो- मे रोज ही न्यायके गलेपर छुरी फिरा करती है । समाजमे पूंजीपतियोकी जो वर्गस्थिति है उसकी बदौलत अधिकारके सभी स्थानोपर पूंजीपतियोका ही एकाधिपत्य होता है । ये पूंजीवादी अधिकारी कितना भी निप्पक्ष होनेकी कोशिश क्यो न करे लेकिन स्वभावतः उनका दृष्टिकोण अपने वर्ग-स्वार्थसे रँगा हुआ होता है । भूखों मरनेको आजादी कहा जाता है कि पूंजीवादी प्रजातन्त्रकी स्थापनासे आजकी दुनियामे आजादी कायम हो गयी है, किन्तु श्रमजीवियोके लिए यह आजादी पूंजीपतियोकी शर्तपर अपना अात्म समर्पण करने या वदलेमे भूखो मरनेकी ही आजादी है । सच तो यह है कि आजकलके पूंजीवादी समाजमे साधारण मनुष्योके लिए जीवनकी कठिनाइयॉ सामन्तवादी युगकी अपेक्षा कई गुना ज्यादा वढ गयी है । गरीबी और अमीरी उस समाजमे भी वहुत दर्जेतक थी, किन्तु अाजका-सा यह हाल न था कि एक तरफ सारी सम्पत्ति चन्द इने-गिने हाथमें इकट्ठा हो गयी है और दूसरी तरफ लाखो मेहनत करनेवाले परिवार भूखो मरते हैं । सामन्तवादी जमानेमे उत्पादनकी शक्तियोका आजका-सा विकास न था, जीवनकी बहुत-सी सुविधाएँ, जो आज मिल सकती है, प्राप्त न थी। पर आज तो हर देशमे वेकारोकी एक बहुत बड़ी फौज खडी हो रही है । जो लोग काममे लगे हुए है उनको अपने श्रमका पूरा मुग्रावजा मिलना तो दूर रहा उल्टे हमेशा उन्हे यह डर रहता है कि किसी भी क्षण के वेकारीके गिरोहमे फेक दिये जा सकते है । यह विषमता क्यों ? आजकलके समाजकी यह भीपण विपमता क्यो ? इस विपमताका कारण यह है कि उत्पादन, विनिमय और वितरणके साधनोपर चन्द पूंजीपतियोका अधिकार है। उत्पादनके इन साधनोमे-मिलो, कारखानो और वैको आदिमे-काम करनेवालोका इन साधनोपर कोई अधिकार नही है । प्राचीन कालमे जव कि गृहशिल्प ( cottage 2
पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२८०
दिखावट