पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/२९६

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इतिहासकी भौतिक व्याख्या २८१ संग्रथित किया जिसे हृदयङ्गम करके हम समाजके भूत और वर्तमानके इतिहासको समझ सकते है और भविप्यके लिए अपना कर्तव्य निर्धारित कर सकते है । जव मार्क्सने पहले-पहल यह बतलाया था कि दुनिया समाजवादकी ओर जा रही है तो पूंजीवादके समर्थक विद्वानोने मार्क्सके विचारोंका मजाक उडाया था, समाजवादको स्वप्नमात्र बतलाया था। आज हम अपनी आंखोके आगे देख रहे है कि किस प्रकार यह स्वप्न प्रत्यक्ष हो रहा है और मार्क्सका भविप्यकथन सत्य सिद्ध हो रहा है । आज संसारके छठे भागपर, रूसमे, समाजवादकी विचारधाराके अनुसार व्यावहारिक रूपमे समाजका संगठन हो रहा है। कई देशोमे मजदूरोकी पार्टियाँ ताकतमे आ चुकी है। वर्ग-सघर्पने अन्तर्राष्ट्रीय रूप धारण कर लिया है । प्रजातन्त्रवादी देशोमे धारा-सभायोकी लड़ाई अव सीधे टोरी और लेवर (मजदूर) पार्टीके वीच रह गयी है । बीचके लिवरल लोगोंका प्रभाव घटता ही चला जा रहा है। शोषित-वर्गके सदस्य शोपकोके स्वार्थोकी रक्षाके लिए बनायी गयी विचारधाराके प्रभावसे मुक्त हो रहे है । समाजवादकी ओर समाजवादका आदर्श सर्वसाधारणमे इतना जनप्रिय हो गया है कि उसके बड़ेसे बड़े विरोधीकी भी यह हिम्मत नही पड़ती कि वह खुलेग्राम समाजवादका विरोध कर सके । इसके विपरीत, वडेसे वडे प्रतिक्रियावादी सिद्धान्तोका प्रतिपादन भी समाजवादके नामपर किया जाने लगा है। हिटलर भी जर्मन जनतापर अपना प्रभाव जमाये रखनेके लिए अपने प्रतिगामी सिद्धान्तोका प्रचार 'राष्ट्रीय समाजवाद' ( National Socialism ) के नामपर ही करता था । जव कोई भी विचार सर्व-साधारणके मनपर काबू कर लेता है और वह तभी काबू कर लेता है जब कि सार्वजनिक हितकी दृप्टिसे वह वांछनीय होता है तो उसके विरोधियोको उससे खुलेग्राम लडनेकी हिम्मत नही होती और खुली लड़ाईके वदलेमे छिपी लडाईका रास्ता अख्तियार करते है। आज हिन्दुस्तानमे भी हम यही हालत देख सकते है । यहाँ भी भारतीय समाजवाद, वर्णाश्रम समाजवाद, मुस्लिम समाजवाद और वैदिक समाजवाद आदि तरह-तरहके समाजवादोका हवाला देकर यह कहा जाने लगा है कि मार्क्स और लेनिनद्वारा प्रतिपालित वैज्ञानिक समाजवाद विदेशी है और अपने देशमे उसकी आवश्यकता नहीं ! पूँजीबादको ह्रासावस्था ऊपरके उदाहरणसे यह वात स्पप्ट हो जाती है कि किस प्रकार आर्थिक रचनामें परिवर्तन होनेके साथ समाजकी समूची विचारधारामे परिवर्तन हो जाता । इतिहासके किसी कालको भी लेकर उसका विश्लेपण करनेपर हमे यही नियम काम करता हुआ दिखायी देगा। आजकलकी अवस्थाका विश्लेपण करके देखे तो हमे पता चलेगा कि उत्पादनकी शक्तियो और उत्पादनकी अवस्थाअोके बीचकी असगतियो ( contrad- ictions ) के आत्यन्तिक रूपसे बढ जानेके कारण पूंजीवादी आर्थिक-रचना जर्जर हो रही है और परिणामस्वरूप वर्तमान पूंजीवादी सामाजिक भवनका ऊपरी ढाँचा भी