२८६ राष्ट्रीयता और समाजवाद वे बढ़कर इस नयी साम्यावस्थाका नाश करती है और उसके स्थानपर दूसरी नयी साम्या- वस्थाकी स्थापना करती है । इस प्रकार एक साम्यावस्थाके स्थानपर, उसकी असंगतिका सृजन करनेवाली प्रकृतिके कारण हमेशा दूसरी नयी साम्यावस्था कायम होती रहती है और प्रगति अपने पथपर इसी प्रकार अग्रसर होती रहती है । गुणात्मक परिवर्तन ऊपर हमने बताया कि अवस्था-विणेपके भीतर जो असगतियां उत्पन्न होती है वे बढते-बढते ऐसा रूप धारण कर लेती है कि पुराने समाजका मूलत. नाश हो जाता है और नये समाजकी उत्पत्ति होती है । इस सम्बन्धमें हमें यह नियम ध्यान में रखना चाहिये कि किसी वस्तुकी मात्नामें लगातार वृद्धि होनेपर ऐसी अवस्था आती है जब उसमें गुणका भेद ( qualitative change ) उत्पन्न हो जाता है। उदाहरणार्थ, सामन्तवादी समाजकी ही पुरानी अवस्थाको ले तो हम देवेगे कि उसमें जो असगतियां उत्पन्न हो रही थी उनके गुणात्मक स्पसे बढ़ जानेपर ही एक समय ऐमा अाया जब कि उसके स्थानपर पूंजीवादी प्रणाली स्थापित हो सकी । सामन्तवादी समाजमे कुछ व्यक्तियोके पास रुपये इकट्ठे हो रहे थे, किन्तु उन रपयोको पूंजी बनने का सौभाग्य तभी प्राप्त हो सका जब कि वह वातावरण तैयार हो गया जिसमें इन रपयोकी बदौलत बड़े पैमानेपर मजदूरोकी श्रमशक्ति खरीदकर और उससे बनी हुई चीजें बेंचकर बदलेमें अतिरिक्त मूल्य ( surplus value ) उत्पन्न करना सम्भव हुा । परिवर्तनके सख्यात्मकके स्थानपर गुणात्मक रूप धारण करनेका एक बहुत सरल उदाहरण हमे पानीका मिलता है । जब पानीको गर्म करते है तो हम देखते है कि पानीके भीतर गर्मीकी मात्रा बढती रहती है फिर भी अवस्था-विणेपतक उसमें उबाल नही पाता । किन्तु गर्मीकी काफी मात्रा इकट्ठी हो जानेपर पानीके भीतर गुणात्मक परिवर्तन हो जाता है; पानीका उबलना और भापका बनना शुरू हो जाता है । मामाजिक विकासके क्षेत्रमे देखनेपर पता चलता है कि उसमें भी एक व्यवस्थाके भीतर जो असंगतियाँ उत्पन्न होती रही है वे बढते-बढते एक ऐसी अवस्थामें पहुँच जाती है जब कि गुणात्मक परिवर्तन होता है । गुणात्मक परिवर्तनकी इस मञ्जिलमे पुराने समाजका रूपान्तर क्रमिक सुधार ( reformism ) के जरिये न होकर आकस्मिक वेगसे अर्थात् क्रान्ति (revol- ution ) के द्वारा होता है । जिस प्रकार वच्चा मांके गर्भमे वढ़ता है, किन्तु लगभग नौ मासके उपरान्त एक दिन वह अचानक माताको कड़ी प्रसववेदना देते हुए बाहर निकल पडता है उसी प्रकार पुराने समाजके भीतर नये समाजकी अवस्थाएँ जब परिपक्व हो जाती है तो अचानक क्रान्तिके द्वारा नये समाजका जन्म होता है । क्रान्ति नये समाजकी प्रसववेदना है । एक समाजसे नये उन्नत समाजकी ओर जानेके लिए क्रान्ति एक अनिवार्य सीढ़ी है। मार्क्सवादका क्रान्तिकारी दर्शन हमे यही सिखलाता है।
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