पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/३१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३०४ राष्ट्रीयता पीर समाजवाद शताव्दीके शुद्ध आदर्शवादसे मिश्रित था । हेगेलको शिक्षामें अतीतका प्रभाव स्पष्ट पाया जाता है, क्योकि वह आध्यात्मिक विकासके आदर्शवादी रहस्यमय प्रकारको विकासके द्वन्द्ववादसे मिलाती है । इस द्वैतभावके कारण इन दोनो शिक्षामोंका परिणाम एकसा ही हुया । दोनो शिक्षाप्रोके लाजिमी नतीजेसे जो घबराये नही वह समाजवादके सिद्धान्तोके माननेवाले हो गये । दूसरी ओर जिन पूंजीवादी शास्त्रियोने वर्ग और द्वन्द्ववादसम्बन्धी शिक्षाका परित्याग किया उन्होने इन शिक्षाओका केवल अग ग्रहण किया जो आदर्शवादी था। मार्क्स साइमनवादियोका उत्तराधिकारी था, जिन्होंने वर्तमान पूंजीवादी समाजकी शोपण परिक्रियाको समझ लिया था पीर जो उनके रथानमे ऐसे सघ कायम करना चाहते थे जिनमे शोपणके लिए कोई स्थान न हो । किन्तु किस प्रकार ऐसे सघ कायम हो सकते है, इस सम्बन्धमे उनके विचार काल्पनिक थे । अपना उद्देश्य प्राप्त करनेके लिए उन्होंने श्रमजीवी वर्गकी ओर ध्यान न दिया किन्तु वे मनुष्यकी सदिच्छापर निर्भर करते रहे इस कारण उनकी शिक्षा काल्पनिक पौर निस्सार हो गयी। जहाँ सेन्ट साइमनके अनुयायियोमे वामपक्षी समाजवादी थे वहां आगस्टाइन थीरी ( Augustine Thierry ) at ITIC AFET ( Auguste Counte) दक्षिण पूँजीवादी थे । थीरीके प्रतिगामी विचार हम उपर देख चुके है । कान्टे विधेयवाद ( positivism ) का सस्थापक था। उसकी विचारप्रणालीमें वर्गसिद्धान्त, संघर्प या क्रान्तिका उल्लेख भी नही है । उसके अनुसार समाजका आकार तदनुरूप विचारके विकासको अवस्थापर निर्भर करता है। उसका कहना है कि वहुदेववादके अनुरुप सैनिकवाद, आध्यात्मिक अवस्थाके अनुरूप साम्राज्यवाशाहीके विविध स्थायी रूप और विधेयवाद ( positivism ) के अनुस्प व्यवसायवाद है । अव सामाजिक घटनाप्रोकी परीक्षाके स्थानमे मनोवैज्ञानिक ( psychological ) हेतुनोकी छानवीन होने लगी। पूंजीवादी ऐतिहासिकोमे यह परिवर्तन अहेतुक नही है। उनमेंसे एक भी यह बात न समझ सका कि सामाजिक मनोविज्ञान स्वयं सामाजिक परिस्थिति और सामाजिक जीवनकी घटनाअोसे उत्पन्न होता है। वास्तविक जीवनकी घटनाग्रोका अनुसन्धान न करना और समाजशास्त्र तथा इतिहासको मनोविज्ञानके दर्जेपर ले आना उस प्रयत्नका फल है जो वर्गसंघर्पके उल्लेखको इतिहाससे मिटा देना चाहता है । सामाजिक विकामके वास्तविक नियमोके अन्वेपणसे पूंजीपतियोका तो अब भला होनवाला था नही, इसलिए उन्हे अबसे सामान्य तर्कोसे ही काम लेना था जो कुछ भी न वतलावे न समझावे । इसीलिए सामाजिक श्रेणियोका विचार वहिष्कृत कर दिया गया, इतिहासमे आध्यात्मिक तत्वको जरूरतसे ज्यादा महत्व दिया जाने लगा, और ऐसे भी शास्त्री पैदा हुए जिन्होने इतिहासकी सारी प्रक्रियाको कुछ महापुरुपोका खेल वताना शुरू किया जो अपनी इच्छाके अनुसार अद्भुत रचना-शक्तिके जरिये मानव- समाजके भाग्यका फैसला करते है । १. 'सघर्प' १० मार्च, सन् १९४१ ई०