पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४४८

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3 आठवाँ अध्याय मेरे संस्मरण मेरा जन्म सम्वत् १९४६ मे कार्तिक शुक्ल अप्टमीको सीतापुरमे हुआ था। हमलोगोका पैतृक घर फैजावादमे है, किन्तु उस समय मेरे पिता श्री वलदेव प्रसादजी सीतापुरमे वकालत करते थे। हमारे खानदानमे सबसे पहले अग्रेजी शिक्षा प्राप्त करनेवाले व्यक्ति मेरे दादाके छोटे भाई थे। अवधमे अंग्रेजी हुकूमत सन् १८५६ मे कायम हुई । इस कारण अवधमे अग्रेजी शिक्षाका आरम्भ देरसे हुआ। मेरे वावाका नाम वा० सोहनलाल था । वह पुराने कैनिङ्ग कालेजमे अध्यापकका कार्य करते थे। उन्होने मेरे पिता और मेरे ताऊको अंग्रेजीकी शिक्षा दी। पिताजीने कैनिङ्ग कालेजमे एफ० ए० कर वकालतकी परीक्षा पास की थी। अाँखोकी वीमारीके कारण वह वी० ए० नही कर सके । मेरे वावा उनको कानूनकी पुस्तके सुनाया करते थे और सुन-सुनकर ही उन्होने परीक्षाकी तैयारी की थी। वकालत पास करनेपर वह सीतापुरमे मेरे वावाके शिष्य मुन्शी मुरलीधरजीके साथ वकालत करने लगे। दोनो सगे भाईकी तरह रहते थे। दोनोकी आमदनी और खर्च एक ही जगहसे होते थे । मुन्शीजीके कोई सन्तान न थी। वह अपने भतीजे और मेरे बडे भाईको पुत्रके समान मानते थे। मेरे जन्मके लगभग दो वर्ष बाद मेरे दादाकी मृत्यु हो जानेके कारण पिताजीको सीतापुर छोड़ना पड़ा और वह फैजाबादमे वकालत करने लगे। जव वह सीतापुरमे थे, तभी उनकी धार्मिक प्रवृत्ति शुरू हो गयी थी। किसी संन्यासीके प्रभावमे आनेसे ऐसा हुआ था। वह बड़े दानशील और सात्विक वृत्तिके थे । वेदान्तमे उनकी बड़ी अभिरुचि थी और इस शास्त्रका उनको अच्छा ज्ञान था। सन्यासियोका सत्सग सदा किया करते थे। जिस समय उन्होने शिक्षा प्राप्त की थी, उस सनय फारसीका प्रचलन था। किन्तु अपनी संस्कृति और धर्मका ज्ञान प्राप्त करनेके लिए उन्होने सस्कृतका अभ्यास किया था। वह एक नामी वकील थे। किन्तु वकालतके अतिरिक्त भी उनकी अनेक दिलचस्पियाँ थी। बालकोके लिए उन्होने अग्रेजी, हिन्दी और फारसीमे पाठ्य पुस्तके लिखी थी। इनके अतिरिक्त उन्होने कई संग्रह-ग्रन्थ भी प्रकाशित किये थे। अग्रेजीकी प्राइमर तो उन्होने मेरे बड़े भाईको पढ़ानेके लिए लिखी थी। मेरा विद्यारम्भ इन्ही पुस्तकोसे हुआ था । उनको मकान बनाने और वाग लगानेका भी शौक था। हमारे घरपर एक छोटा-सा पुस्तकालय भी था । जव मैं वडा हुआ तो गर्मीकी छुट्टियोमे इनकी देख-भाल भी किया करता था। मैं ऊपर कह चुका हूँ कि मेरे पिताजी धार्मिक थे और इस नाते सनातनधर्मके उपदेशक, संन्यासी और पण्डित मेरे घरपर प्रायः आया करते थे। किन्तु पिताजी काग्रेस और सोशल कान्फरेन्सके कामोमे भी थोड़ी बहुत दिलचस्पी लेते