पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/४७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४६६ राष्ट्रीयता और समाजवाद हिन्दू चाय और मुसलिम चायकी तरह हिन्दू समाजवाद और मुमलिम समाजवादके पैदा होनेमे देर न लगेगी। वैज्ञानिक समाजवादको एसे विचारोका विरोध करना पडेगा, क्योकि ये विचार निराधार और कल्पित है और इसलिए इनके सफल होनेकी कोई सम्भावना नहीं है । अतीतके पुनरुज्जीवनका प्रयत्न वालसे तेल निकालनेके प्रयत्नकी तरह मर्वथा विफल होगा। ऐसे विचारोका प्रचार कर हम देशको गलत रास्तेपर ही ले जायेगे । केवल कल्पनाके बलपर हम अपना अभीप्ट सिद्ध नही कर सकते । यदि हम मशीन-युगकी बुराइयोंसे बचना चाहते है, तो उसका यह तरीका नही है कि हम पीछे कदम रखें और सारी ग्रौद्योगिक उन्नति- का खातमा करके ससारकी गरीवी और मुसीवतको और भी बढा दें। इन बुराइयोके अन्त करनेका तरीका एकमात्र वैज्ञानिक समाजवाद है । इस तरीकेके वर्तनसे हम पूंजीवादी प्रथाके लाभको सुरक्षित रखते हुए उसके दोपोंको दूर कर सकेगे, अन्यथा नहीं । इतिहाससे पता चलता है कि प्राचीनकालमे कई देशोमे भूमि व्यक्तिकी सम्पत्ति न होकर समाजकी सम्पत्ति मानी जाती थी। रूसमे ऐसी ग्राम-संस्थाएँ १६ वी गताव्दीतक पायी जाती थी। भारतवर्पके साहित्यसे भी ऐसी सस्थानोंकी सत्ताका पता चलता है । यद्यपि समाजवादकी व्याख्याके अनुसार समाजवादका लक्षण यही है कि उत्पादनके साधन व्यक्ति विशेपकी मिलकियत न होकर समाजकी मिलकियत हो, तथापि हमको इस भूलमे न पड़ना चाहिये कि यह प्राचीन ग्रामसस्थाएँ वैज्ञानिक समाजवादके सिद्धान्तपर आश्रित थी। उत्पादनके जो तरीके उस समय काममे पाते थे, उनसे सम्पत्ति इतनी प्रचुरतामें नही उत्पन्न हो सकती थी कि समाजवादके उद्देश्योकी पूर्ति हो सके । हमको यह ध्यानमें रखना चाहिये कि समाजवादका उद्देश्य समाजके धनको सबमें वरावर-वरावर वांटना नही है। यदि यही उद्देश्य हो, तो अत्यन्त निर्धन देशोमे इस बँटवारेका फल यही होता कि अमीर लोग तो गरीब हो जाते, पर गरीबोकी गरीबी दूर नहीं होती। वैज्ञानिक समाजवाद गरीवोकी गरीबी दूर करना चाहता है, न कि कुछ अमीरोसे कुढकर उनको तबाह करना । इसलिए वैज्ञानिक समाजवादकी कल्पना भी मशीन-युगके पहले नहीं हो सकती थी। मशीन-युग तथा उसमे पैदा होनेवाला वर्तमान पूंजीवाद ही वैज्ञानिक समाजवादका जन्मदाता है । मशीनके द्वारा जो प्रौद्योगिक उन्नति हुई है, उसने यह प्रमाणित कर दिया है कि प्रचुरताके इस युगमे जब लोग इसलिए मुसीवत नही उठाते कि संसारमे भोजन तथा सुखकी सामग्रीकी स्वल्पता है बल्कि इसलिए कि उत्पादनके साधनोके मालिक अपने स्वार्थके लिए, न कि समाजके हितके लिए वस्तुअोका उत्पादन करते है, समाजवादको प्रतिष्ठा करना सम्भव हो गया है । मशीनयुगके पहले सम्पत्तिकी वृद्धिका कोई ऐसा बड़ा जरिया नही था और इसलिए उस जमानेमे चाहे भूमिपर समाजका ही क्यो न अधिकार रहा हो, समाज- वादके द्वारा समाजकी गरीबी नही दूरं की जा सकती थी। इसका जिक्र करना यो आवश्यक प्रतीत हुअा कि रूसके इतिहासमे हमको एक राजनीतिक दलका ( Narodnik ) उल्लेख मिलता है जिसकी विचार-पद्धति इसी प्रकारकी थी। यह दल रूसमें ऐसी ग्राम-सस्थानोको कायम करना चाहता था, जिनमे