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पृष्ठ:राष्ट्रीयता और समाजवाद.djvu/९०

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अभिभापण ७७ अधिकारोमे किसी प्रकारका सशोधन या परिवर्तन न हो सकेगा। किन्तु निरीह, अकिंचन किसानकी दरिद्रता दूर करनेका किसी प्रकारका आश्वासन नही दिया गया है । हमको यह न भूलना चाहिये कि साम्राज्यवाद जनताका अर्थशोपण करके ही पनप सकता है । यूरोपके प्रत्येक राष्ट्रको आर्थिक संकटका मुकाबला करना पड़ रहा है और इस संकटसे त्राण पानेके लिए वह अपने उपनिवेशोको और अधिक चूसता है । ऐसी अवस्थामे जनसाधारणकी चिन्ता कौन करता है ? कांग्रेसने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह विधानको रद करनेके लिए ही अपने प्रतिनिधि व्यवस्थापक सभामे भेज रही है। उसका उद्देश्य विधानको कार्यान्वित करना नही है, किन्तु उसका विरोध करना और अन्त करना है । काग्रेसने अपनी चुनाव-घोषणामे साफ कह दिया है कि उसके मतमे व्यवस्थापक सभानो द्वारा स्वतन्त्रता नही प्राप्त हो सकती और आदेश दिया है कि काग्रेसके सदस्य इन सभाअोका ऐसा उपयोग करे जिससे जनताकी शक्ति बढे और व्यवस्थापक सभाग्रोके बाहर जो कार्य हो रहा है उसमे सहायता मिले तथा स्वतन्त्रता प्राप्त करनेके लिए जिस शक्तिकी अावश्यकता है उसका विकास हो । काग्रेसने अपना एक कार्यक्रम भी जनताको यह बतलानेके लिए प्रकाशित किया है कि उसका लक्ष्य क्या है । इस प्रकार काग्रेसने इसका सकेत कर दिया है कि जब कभी वह अधिकारसम्पन्न होगी तब वह क्या करेगी। कृषिसम्बन्धी प्रश्नोपर प्रान्तीय कमेटियाँ विचार कर रही है और शीघ्र ही काग्रेसकी ओरसे एक कार्यक्रम प्रकाशित होगा जिसमें कृषिसम्बन्धी सब प्रश्नोका विचार होगा और उनके सम्बन्धमे काग्रेसकी नीति निर्धारित की जावेगी । प्रान्तीय कमेटियोको यह भी अधिकार दिया गया है कि वे अपनी स्थानीय आवश्यकतानोको देखते हुए यदि जरूरी समझे तो परिपूरकके रूपमे एक और घोषणा प्रकाशित कर दे। अपने प्रान्तकी कमेटी इस कार्यमे सलग्न है और आशा है कि वह प्रान्तके विशेष प्रश्नोके सम्बन्धमे भी अपनी नीति निर्वाचकोपर प्रकाशित कर देगी। इस प्रकार हम देखेंगे कि व्यवस्थापक सभाप्रोकी ओर हमारा एक विशेप दृष्टिकोण है। इस सम्बन्धमे मन्त्रिपद ग्रहण करनेके प्रश्नपर विचार करना अनुचित न होगा। अखिल भारतीय काग्रेस कमेटीने इस प्रश्नपर अभीतक विचार नही किया है। उसने निश्चय किया है कि यह प्रश्न चुनावके वाद ही तय किया जाय, किन्तु यह प्रश्न फैजपुर काग्रेसके सामने आनेवाला है, इसलिए इसके सम्बन्धमे मैं कुछ शब्द कह देना आवश्यक समझता हूँ। मेरा निवेदन है कि विधानको रद करनेकी नीतिको स्वीकार करके हम मन्त्रिपद ग्रहण करनेकी वात सोच भी नही सकते । इसका अर्थ होगा ब्रिटिश साम्राज्यवाद: से समझौता करना और विधानको काममे लाना । काग्रेससे देशको बहुत बड़ी आशा है और यदि हम विना पूर्ण अधिकार प्राप्त किये मन्त्रिपद ग्रहण करेगे तो हम अपनी प्रतिज्ञानोको पूरा न कर सकेगे और हम देशके विश्वासपात्र न रह जायेंगे । जनता भी इस धोखेमे पड़ जायगी कि इस नवीन विधानमे कुछ न कुछ तत्त्वकी वात अवश्य होगी, तभी तो काग्रेसके लोग पदग्रहण कर रहे है ।