पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/१२५

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बयालिसव "चंद द्वारका समयौ' दिल्ली से कविचंद की द्वारिका तीर्थ-यात्रा और चित्तौड़ में रावल जी से तथा ग्रन्हलवाड़ा में भीमदेव चालुक्य से भेंट करके उसके दिल्ली लौटने का उल्लेख करता है । तैंतालिसवें 'कैमास जुद्ध' में गोरी के आक्रमण का मोर्चा कैमास दाहिम द्वारा लिये जाने, शाह के पराजित होकर वन्दी होने तथा दंड भरने पर पृथ्वीराज द्वारा छोड़े जाने की चर्चा है । चवालिसवें 'भीमवध सम्यो' में अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिये भीमदेव चालुक्य पर पृथ्वीराज की चढ़ाई, युद्ध में चालुक्य की मृत्यु और चौहान द्वारा उसके पुत्र कचराराय का तिलक किये जाने का प्रसंग है । पैंतालिसव 'संयोगिता पूर्व जन्म प्रस्ताव' इन्द्र-प्रेषित मंजुघोषा अप्सरा का सुमंत मुनि का तप भंग करने के लिये आने परन्तु प्रेम-पाश की पूर्ति के काल में अचानक मुनि के पिता जरज ऋषि के आगमन और अप्सरा को पृथ्वी पर जन्म लेने के आप-स्वरूप संयोगिता का अवतरण वर्णन करता है । छियालिसवें 'विनय मंगल नाम प्रस्ताव' में किशोरी राजकुमारी संयोगिता को वृद्धा मदन ब्राह्मणी द्वारा विनय पूर्ण आचर की शिक्षा का उल्लेख है। सैंतालिसवें 'सुक वर्णन' में एक शुक और शुकी का क्रमश: ब्राह्मण और ब्राह्मणी वेश में संयोगिता और पृथ्वीराज को रूप और गुणानुवाद द्वारा परस्पर आकर्षित करने का लेख है । इतालिसवें 'बालुका राय सम्यौ' में जयचन्द्र के राजसूय यज्ञ करने, पृथ्वीराज को उसमें द्वारपाल का कार्यभार ग्रहण करने के लिये बुलाने और उनकी अस्वीकृति पर उनकी सुवर्ण-मूर्ति उक्त स्थान पर खड़े किये जाने तथा इस समाचार को पाकर पृथ्वीराज के रोष युक्त हो कान्यकुब्जेश्वर के भाई बालुकाराय पर चढ़ाई करके उसे मारने तथा उसकी स्त्री का विलाप करते कन्नौज- हुए यज्ञ में जाकर पुकारने का लापन है । उन्चासवें 'पंग जग्य विध्वंसनो नाम प्रस्ताव' में सारी वार्ता सुनकर और अपना यज्ञ विध्वंस हुआ देख जयचन्द्र का पृथ्वीराज पर चढ़ाई करने, संयोगिता की प्रीति दृढतर होने तथा आखेट में संलग्न चौहान का शत्रुत्रों से घिरने पर भी केवल एक सौ सामंतों की सहायता से विजयी होने का हाल है। पचासवें 'संजोगता नाम प्रस्ताव' में संयोगिता का स्वयम्बर करने के विचार से उनका मन पृथ्वीराज की ओर से फेरने के लिये जयचन्द्र द्वारा एक दूत भेजने और राजकुमारी को अपने हठ पर दृढ़ जानकर गंगा तट के एक महल में निवास देने का विवरण है। इक्यावनवें 'हाँसीपुर प्रथम जुद्ध' में मका जाती हुई सुलतान की बेग्रमों को हाँसीगढ़ स्थित पृथ्वीराज के