पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/१२७

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का दरबार दिखाने का वचन देने का प्रसंग हैं । अडवन मे 'दुर्गा केदार सन्दय' में राज़नी दरबार के भट्ट दुर्गा केदार और चंद का दिल्ली में वादविवाद में समान सिद्ध होते, धयन कायस्थ द्वारा भेद पाकर गोरी के आक्रमण का समाचार दुर्गा केदार द्वारा भेजे कविदास से पृथ्वीराज को मिल जाने के कारण उनका भी युद्ध हेतु सन्नद्ध हो जाने, तुमुलयुद्ध में श्राजानुबाहु लोहाना द्वारा गोरी को बन्दी बनाने, उसकी सेना के पलायन करने और शाह के दंड अदा करने पर छुटकारा पाने का वृतान्त है । उनसठ 'दिल्ली वर्णन' में दिल्ली दरबार का सौन्दर्य, निगमबोध के उद्यान की शोभा, पृथ्वीराज के सुख्ख सभासदों के नाम, दिल्ली नगर का वर्णन, राजकुमार रैनसी की सवारी और उनके साथी कुमार सामंतों का उल्लेख तथा वसन्तोत्सव का विवरण है । साठवी 'जंगम कथा' में कन्नौज के स्वयम्बर में तीन बार अपनी मूर्ति को संयोगिता द्वारा वरमाला पहिनाने के कारण, उसे गंगातट के महल में निवास देने का वृत्तान्त एक जंगम से सुनकर पृथ्वीराज राजकुमारी के प्रेम से उद्वेलित हो चंद से कन्नौज चलने का आग्रह करते हैं और मृगया के उपरान्त शिव-पूजन करके वे फिर कवि से चलने की चर्चा चलते हैं। इकसठवे 'कनवज्ज समयो' में पृथ्वीराज का है रानियों के साथ षट् ऋतुयें बिताकर सौं सामंतों और ग्यारह सौ रवारों तथा चंद सहित कन्नौज गमन करने, कन्नौज के समीप पहुँचने पर सबका कवि के साथियों के वेश में रूप बदलने, चंद का अपने साथियों समेत राजा जयचन्द्र के दरबार में जाने और उनसे विनोदपूर्ण तथा प्रगल्भ वार्तालाप के उपरान्त सम्मानित होने और चादर-सत्कार से ठहराये जाने, पृथ्वीराज के छद्म वेश का उद्घाटन होने पर कवि का पड़ाव घेरने की जयचन्द्र की आस तथा युद्धारम्भ, इसी समय पृथ्वीराज का गंगा तट के महल से संयोगिता को अपने घोड़े पर बिठाकर अपने दल में श्राने तथा क्रमशः दल-पंग की विशाल वाहिनी से लड़ते भिड़ते दिल्ली की ओर प्रस्थान और सामंतों की अपार हानि सहकर अपने राज्य की सीमा में पहुँचने तब पंगराज का पश्चाताप करते हुए कन्नौज लौट जाने, दिल्ली पहुँचकर संयोगिता और पृथ्वीराज के विधिपूर्वक विवाह में जयचन्द्र द्वारा पुरोहित के हाँथ से बहुत सा दहेज भेजने तथा दम्पति- विलास और सुख का विस्तृत वर्णन है । बासठवें 'शुक चरित्र प्रस्ताव' मैं के प्रत्यक्षदर्शी वाचाल शुक द्वारा संयोगिता का नख-शिख और रति-क्रीड़ा वर्णन, सपत्नी द्वेष से इच्छिनी का संयोगिता के प्रति मनमुटाव