पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२६३

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शब्दार्थ- - रू० १८ पट है । मुर= मुद्रा। षट कोस= छै कोस । मुकाम करि=पड़ाव डालता हुआ। चढ़ि चल्यौ = चढ़ चला (या लौट चला) । कौ=का (सम्बन्ध कारक ) । परिवांन प्रमाण।

रू.०-१९. - वै कुछ विद्वान् इसका 'विशेष' अर्थ यह सम्बन्धकारक का चिन्ह समस्त पड़ता है और रासो के इसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। दूसरी सम्भावना यह भी है कि लगाते हैं परन्तु अनेक स्थलों पर यह छंद के नियम पूरे करने के लिये लगा दिया जाता होगा । दल सेना । संमुहौ = मुकाबिला करने या भिड़ने । गौ= गया। पंजाब प्रमांन :- पंजाब को प्रमाण बनाता हुआ अर्थात् सीधा पंजाब को लक्ष्य करके । पुब्ब < पूर्व । रु<= और। पच्छिम < सं० पश्चिम। दुहुँ – दोनों।

रू०२०-कनवज्ज<सं० कान्यकुब्ज ( कुबड़ी कन्या) कन्नौज [वि० वि० भौगोलिक प० में] । दूतगुप्तचर । तिन थांन=उस स्थान पर । मंडि रचकर कहना । प्रमांन< प्रमाण = सबूत । कमज्ज ( < कामध्वज या कन्या- भ्वज)--यह पृ० रासो में अनेक स्थलों पर जयचंद के लिये लाया है [ उ०- “इह कहत नृप पंग सुष्णी । बियो दूत नृप अपन दी ॥ दुचितचित्त मुक्की बर बानी । कुसल वीर कमधज्ज न जानी ॥” सम्यौ २६, छंद ८ “चढ़ि चल्यो पंग कमज्ज राइ । सो छिन्न भिन्न डम्भरित छाइ ॥" सभ्यौ २६, छंद ३६, "इ सँपते सूर धर । सुरताना कमधज्ज ॥" सम्यौ ३१, छंद २२; कमज्ज बाँह बर ।" सम्यौ ६१, छंद ३०३; "कमधज्जराज फिरि चंद कहु ।” सयौ ६१ छंद, ६५८ -- इत्यादि ]। पूत थे और कामध्वज उनका विशेषण या कि जिसकी ध्वजा में कामदेव अंकित है और कन्याध्वज का अर्थ है कि जिसकी ध्वजा में कुमारी कन्या अंकित है । संवत् ५२६ (४७० ई० पू० ) में नयनपाल "कन्नौज वाले राठौर वंशी राज- पदवी थी । कामध्वज का अर्थ है कन्नौज पर अधिकार किया और तभी से राठौरों ने 'कामधुज' पदवी ग्रहण की" [Rajasthan, Tod, Vol. II, P. 5] । परन्तु कन्नौज पर सबसे प्रमाणिक पुस्तक History of Kanauj R. S. Tripathi Ph. D. (London ) - में ये सब प्रमाण नहीं मिलते।

रू० २१ --बर अवाज सब मिट्टि के सब आवाज़े मिटाकर अर्थात् चुपत्वाप।

रू० २२---संभल नृपति=साँभर का राजा अर्थात् पृथ्वीराज। बिल्ल= खेलना। पाधर (या पद्धर) <सं० प्रधारणा = जाल, बाड़ा या रोक।जूह (या