पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२७०

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युद्ध करना चाहिये । [ 'हे राजन्, पृथ्वीराज, मेरी सलाह सुनिये । लाहौर के दुर्ग में पहुँचकर युद्ध में आप शाह गोरी को पकड़ लें ।' ह्योर्नले ] | अपने राज्य की समस्त सेना एकत्रित कर लेना चाहिये और अपने इष्टों, भृत्यों, सों और सुहितों को पत्र लिख देना चाहिये । हे सामंतों के स्वामी, यही राजमत होना चाहिये फिर जो कुछ आप और विचारें । धर्म और यश का योग ही आपका मुख्य धन होना चाहिये क्योंकि आपका तेज इंद्र के समान अक्षय है! [ 'हे सामंतों के स्वामी, यह तो हम सामंतों का मत है और जो बात आप उचित समझें वह की जाय । स्वामिधर्म ( स्वामिभक्ति ) एक पवित्र वस्तु है और राजपूत के लिये यश के योग्य होना ही कल्याण है । राजन् पृथ्वी पर इन्द्र सद्दश तेजस्वी हों । ह्योनले ] ।

शब्दार्थ - रू० २६ - जैत पंवार < जैत सिंह प्रमार- प्रमार- इसका पूरा नाम जैत था और यह प्रसिद्ध श्राबूगढ़ का अधिपति था।जैसा कि इसी सयौ में आगे पढ़ेंगे कि जैत का संबंधी या भाई मारा गया - ( जैन बंध गिरि परौ सुन को जायौ)। उसके पुत्र का नाम सुलख था और पुत्री का इंच्छिनी जिसका विवाह पृथ्वीराज से हुआ था ( रासो सम्यौ २४ ) । पृथ्वीराज ने बारह वर्ष की आयु में इंच्छिनी से विवाह किया था और वह उनकी दूसरी रानी थी --- ["बारमै वरस का सलष सोय । दिनी सु श्राय इंछनी लोय । ग्राबू सु तोरि चालक गंजि । किन्नौ सु ब्याह परिभाष मंजि" रासो सम्यौ ६५, ० ४] | जैत ने बराबर पृथ्वीराज का साथ दिया था । संयोगिता अप हरण विषयक युद्ध में वह भी आहत हुआ था ( रासो सम्यो ६१ ) | वह प्रमार वंशी राजपूत था । प्रमार के बदले पंवार, परमार, पवार, पुत्रार नाम भी रासो में पाये जाते हैं । वार अग्निकुल क्षत्रियों में प्रभार भी हैं ( रासो सम्यौ१) । "यह (प्रमार जाति) अग्निकुलों में सबसे अधिक शक्तिशाली जाति थी और ८५ शाखाओं में विभक्त थी" (Rajasthan. Tod Vol. I, pp. 90-91) ! प्रमार जाति का वर्णन Hindu Tribes and Castes. Sherring. Vol. I, pp. 143-49 में भी मिलेगा । गत=जाकर एक इकट्ठा । सगपन = अपने सगे | मंत सं०' मंत्रणा - सलाह | दीप-तेज| दिपति = दीप्ति- मान । दिवलोक पति इंद्र ( वि० वि० प० में देखिये) ।

कवित्त

वह वह कहि रघुबंस रांम हक्कारि स उठ्यौ ।
सुनौ सब सामंत साहि आयें बल छुट्यो[१]


  1. ए० - बच्चौ ।