पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२७२

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शब्दार्थ - रू० २७ - वह वह वाह वा । रघुवंस राम-रघुवंशी राम के लिये आया है जिसके विषय में रासो में लिखा है- 'जिहि नंदिपुर भंजि' । "रघुवंशी राजपूत अपनी उत्पत्ति अयोध्या के रघुवंशी राजा रघु से बताते हैं । रघुवंशी राजपूतों की जाति उत्तरी पश्चिमी प्रदेशों में फैली हुई है। मैनपुरी और एटा के रघुवंशियों का कथन है कि वे राजा जयचन्द के समय कन्नौज से आये थे” [ Hindu Tribes and Castes Sherring. Vol.I, pp. 210-11 ]। हक्कारि स उठ्यौ = चिल्लाता हुआ उठा । साहि श्राये= शाह के आने पर । बल छुट्यौ - तुम्हारा बल छूट गया अर्थात् तुम्हारा साहस जाता रहा । [ साहिये बल छुट्यौ = शाह आ गया है उसकी सेना चल चुकी है --योर्नले ] । 'न'- काकाक्ष अलंकार है; (न समौ समौ जानहि न लज्ज पंकै आलु) । श्रालु उलझना, फँसना । पंकै कीचड़ में । लज्ज-लज्जा ! मत्तमत। गर्दै पकड़ना । तौ करन कौ= तभी कर्ण का बेटा हूँ ।

रु० २८ –रे = ऐ। गुज्जर गांवार-यह खुवंशी राम के लिये यहाँ प्रयुक्त हुआ है । यद्यपि कविता में वक्ता का नाम नहीं दिया पर जहाँ तक सम्भव यह जैत प्रमार ही है । अप्प मरै = श्राप मरोगे । छिज्जे विनाश करना । कौन का यह जोई इससे तुम क्या कार्य होता देखते हो । घर बिल्लै == (१) खिल जाना, फूट जाना (अर्थात् महाराज के घर में फूट पड़ जाय ) (२) घर में जाकर आनंद करें - चोर्नले । कारज <कार्य । पछि = पीछे । काज <कार्य । इल्लै : अकेले । गाइना = गायक । वारि वेश्या । भंबर < सं अमर । कन सं० कर्ण कान। वह सोम तहः (Does he get beauty ? No.) Growse.

प्रस्तुत कवित्त की अंतिम चार पंक्तियों का अर्थ ह्योनले महोदय ने इस प्रकार किया है-“All servants of the Chahuvan will betake themselves to their own country and enjoy themselves at home; afterwards what can the king accomplish being alone in the war ? Scholars, soldiers, poets, singers, princes, merchants constitute (the king's court, adorning it like the black bees on the head of an elephant; when he makes them fly around by flapping his ears, he gets beauty,"

नोट - रू० २३ से रू० २८ तक पृथ्वीराज के लाहौर लौटते समय उनके दरबार की युद्ध विषयक मंत्रणा का हाल है। दरबार दो प्रकार के भाव रखे गये । एक मत यह था कि शीघ्र ही जो कुछ सेना है उसे लेकर पृथ्वीराज