पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३२४

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( ८६ ) अनूठी है। पानी की धार का वर्णन ता इस रूपक में है ही अब पानी में रहने वाला भी कोई होना चाहिये और वह 'दीर्घकाय मगर' से अच्छा और कौन कहा जा सकता था । शब्दार्थ ----र - रू० ६६ - खग्य <सं० खड्ग = तलवार [ दे० Plate No. III ] | हटकि = रोकना । टिक = टिकना -- ( यहाँ स्थिर होकर खड़े होने से तात्पर्य है)। जमन <सं० यवन । समुंद : समंद) < समुद्र | गजि = गरजना | हय =घोड़े । गय <सं॰ गज=हाथी । वर हिल्लोर श्रेष्ठ हिलोर अर्थात् बड़ी लहर | गर गोइंद- -- यह पृथ्वीराज के प्रसिद्ध सामंतों में था । अन्य राजात्रों के साथ इसने भो रायल समरसिंह को दहेज दिया था [“दियौ राज गौइंद= श्राहुह राजं । दियं तीस हथ्थी महा तेज सार्ज । " सम्यौ २१, छं० १०८ ] | इसने दो बार गोरी को पकड़ा था ["गोद राव गहिलौत नेस। जिन दोव फेर गज्जन गहेस" ॥ सम्यौ २१, ०६३८ ]। साधारणत: इसके ये नाम मिलते हैं -- गोविन्द राव, गोविंद राय, गोविन्द राज । यह गुहिलोत (गुहिल पुत्र) वंश का था अतएव गुहिलोत राजवंशी उपाधि 'आहुड' भी इसको मिली थी ( "शोनंद राजा हुड पति" ) । गरु गोइंद की मृत्यु इसी कवित्त में स्पष्ट वर्णित है इसलिये यह प्रसिद्ध गोविन्दराज गुहिलोत नहीं है वरन् उसका भाई या अन्य संबंधी है। प्रसिद्ध गोविन्दराज संयोगिता अपहरण के अवसर पर पृथ्वीराज के साथ था ["entre गोद कहि । वर ढिल्ली सुर पान | हथ्य वीर विरुभाइ चलि | वर लग्गै सुरतान ||” सम्यौ ६१] | चंद बरदाई ने उसकी प्रशंसा इस प्रकार की है [गुरूराव गोवंद चंदे सु इंदं । सुतं - मंडलीकं सबै सेन चंद ॥” सम्यौ ६१, छं० १११] । अंत में इसी युद्ध में बड़ी वीरता से लड़कर वह पंचल को प्राप्त हुआ ["उठे हक्कि करि भारि कोपेज डालं । हये प्यार मीरं दुवाहंड ढालं || उरं लग्ग जंबूर थारास बानं । पर्यो राव गोवंद दिल्ली रुजानं ॥" सम्यो ६१, छंद १४७२] | वह पृथ्वीराजके बहनोई समरसिंह गुहिलोत का निकट संबंधी रहा होगा । "उसने पृथ्वीराज की बहिन से विवाह किया", [ Races of N. W. Provinces of India, Elliot, Vol. I. p. 90 ] 1 इलियट महोदय ने समरसिंह गुहिलोत तथा गोविंद गुहिलोत नामों को समझाने में भूल कर दी इससे भ्रमवश ऐसा लिख गये हैं। अगले रू० ८४ में हत वीरों के साथ प्रस्तुत कवित्त में वर्णित गरु गोइंद, 'जैत गोर (गरुवा)' के नाम से थाता है । दिवि सजिसजा हुआ दिखाई पड़ा। नीर= जल । सि= (१) धार (२) अस्ती (३) तलवार । समाहिय ( <० समाधित - : समाधिस्थ) = इकट्ठे हुए, दौड़े, सामने आये । लज्जी = लज्जित कर दिया। परवाहिय: T