पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/४०९

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( १७१ ) 1 कन्या के रूप में तुम्हारे यहाँ जन्म ले और शिव की पत्नी हो ।" वहीं विष्णु की माया दक्ष प्रजापति की कन्या सती हुई जिसने अपने रूप और तप के द्वारा शिव को मोहित और प्रसन्न किया । दक्ष यज्ञ विनाश के समय जब सत्ती ने देह त्याग किया, तब शिव ने विलाप करते-करते उनके शव को अपने कंधे पर लाद लिया। फिर ब्रह्मा और विष्णु ने सती के मृत शरीर में प्रवेश किया और वे उसे खंड-खंड करके गिराने लगे । जहाँ-जहाँ सती का अंग गिरा, यहाँ वहाँ देवी का स्थान या पीठ हुआ। जब देवताओं ने महामाया की बहुत स्तुति की, तब वे शिव के शरीर से निकली जिससे शिव का मोह दूर हुआ और वे फिर योग समाधि में मग्न हुए। इधर हिमालय की भार्या मेनका संतति की कामना से बहुत दिनों से महामाया का पूजन करती थीं। महामाया ने प्रसन्न होकर मेनका की कन्या होकर जन्म लिया और शिव से विवाह किया । 'मार्कडेय पुराण' में चंडी देवी द्वारा शुभ निशुंभ के बध की कथा लिखी है जिसका पाठ चंडी पाठ या दुर्गा-पाठ के नाम से प्रसिद्ध है और भारत में सर्वत्र प्रचलित है । 'काशी खण्ड' में लिखा है कि रुरु के पुत्र दुर्ग नामक महादैत्य ने जब देवताओं को बहुत तंग किया तब वे शिव के पास गये । शिव ने असुर को मारने के लिये देवी को भेजा ! इनके अनेक नाम हैं जिनमें से ८६ हिं० श० सा०, पृ० १५६२ पर दिए हुए हैं। पृथ्वीराज रासो में महामाया युद्ध भूमि में विचरण करने वाली और वीर गति पाने वाले बह्नाओं का वरण करने वाली पाई जाती हैं। रुद्र--- यह रुद्रों और मरुतों के जनक तथा शासक और तूफ़ान के देवता का नाम है । वेद में ये इंद्र और उनसे भी अधिक सर्वभक्षक अग्नि तथा काल से संबंधित पाये जाते हैं। वैदिक साहित्य में अग्नि को ही रूद्र कह डाला गया है और यह माना गया है कि यज्ञ का अनुष्ठान करने के लिये ही रुद्र यज्ञ में प्रवेश करते हैं। वहाँ रुद्र को अग्निस्वरूपी वृष्टि करने वाला और गरजने वाला देवता कहा गया है जिससे वज्र का भी अभिप्राय निकलता है; इसके अतिरिक्त रुद्र शब्द से इंद्र, मित्र, वरुण, पूषण और सोम यदि अनेक देवताओं का भी बोध होता है । परवती साहित्य में उन्हें काल से श्रभिन्न माना गया है । एक स्थान पर उन्हें मरुदगया का पिता और दूसरे स्थान पर अंबिका का भाई भी कहा गया है। इनके तीन नेत्र बतलाये गये हैं