पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/८३

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  • शाहीमहलसर हैं।

.... चौदहवां बयान । ऊपर जिस खेत का हाल मैं दे आया हूं, उसके दूसरे दिन बड़े तड़के उठकर मैंने अपने सिरहाने एक परचा पाया और उसे उठाकर

  • पढ़ा तो उसमें इस मज़मून की चंद सतरें लिखी हुई थीं।
  • दोस्तभनसलामत ! आज शाम के वक्त मैं तुमसे मिलेंगी और

एक अजीब तमाशा तुमको दिखलाऊगी, ताकि तुम्हारा दिल शाद हो और तुमको कुछ तसल्ली हो । मैं उम्मीद करती हूं कि उस वक्त मैं तुकहें बिल्कुल तैयार पाऊगी । . आह ! इस परचे को पढ़ कर मैं निहायत खुश हुआ और उस परी से मिलने के लिये उसी वक्त तैयार होगया, लेकिन उसने शाम को मिलने के लिये लिखा था । सधेरे मैं उस दिन खुशी २ हम्माम में गया। वहीं पर भी चार्ज समैजूत्र थीं, सो मैने आईने के सामने खड़े | होकर अपने घूघरवाले बाल सारे। गो, मुझे अभीतक मुछ' डाढ़ी नहीं निकली थी, लेकिन फिर भी मैने अपनी दाढ़ी पर प्रस्तुरा हो, और नहा धोकर अपनी कोठरी में वापस आया । उस वक वह अर मेरे लिये खाना मौजूद था । आज मैंने बड़ी खुशी के साथ उसे लज़ीज़ खाने को खाया और किताव देखने में मशगूल हुआ,: कार्कि

दिन जल्दो बीत जाय, लेकिन आज का दिन ऐसा पहाड़ सा होकर

आया था कि किसी तरह कटता ही न था। अखीर में मैने घबराकर किताब रखदी और सोने की ठहराई, लेकिन कंबख्त नींद भी न आई लाचार किसी २ तरह करचटें बदल ३ कर मैने दिन बिताया और उसे अपनी मददगार परी का रास्ता तकने लगा ।'

: इतने ही में बद्दी मस्ती और बेहोशी पैदा नेपाली खुशबू उस

कोठरी में फैलने लगी, जिसने मुझे थोड़ी ही देर में घेहोश करदिया और जब मेरी आँखें खुलीं और मैं होश में आया तो मैंने अपने तई

एक सजे सजाए और उमदःमरे में गुदगुदी - मखमली पलंग पर
लेटे हुए पाया।