पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/१८

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  • लखनऊ की कम्र "लेकिन, पहिले मैं तो तेरा रून पोलू । " यों कह कर शायद उस शख्स ने किसी हथियार का वार आसमानी पर किया, जिसने वह तड़प उठी और खबजोर से चीख मारकर धर्म से जमीन में गिर पड़ी।

उसने कहा,-« आह, मेरै कलेजे में धुरी मारी! ” इसके बाद मेरी चारपाई के नीचे से कुछ खटके की आवाज़ आई, जैसी कि उसके दरवाजे खोलने पर मैंने पश्नर सुनी । इसके बाद किसी सल के दौड़ने की क्षाचाल सुनाई दी और साथही घह शस.जिसने आसमानो के कजे में छुरी मारी थी, एक आइ बैंचकर जमीन में गिर पड़ा और जोर से कराह कर घोला. " आह, किश कातिल ने मेरे बाजू घर ल्वार चलाई ? " - इसके बादशाक्षी देर तक उस कोठरी में बिलकुल सन्नाटा छाया रहा, फिर किसी चीज़ के घसीटने और धमाके की आवाज़ सुनाई दी, इसके बाद चारपाई के नीचे बाली सुरंग के चन्द होने की आईट आई। अल्लाह, यह क्या माज अफसोस, मैं कहां आ फला! बस, इसी तरह के खयालों में देरक मैं उलझा रहा, बाद इसके मुझे नींद आगई और सपने में भी मुझे आसमानी की नापाक रह सताने लगी।