पृष्ठ:लखनऊ की कब्र (भाग २).djvu/७३

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  • शादोमाइलसरा कर मैं चुप रह गया कि अभी इससे कुछ कहनी चाहिप और देखर चाहिए कि अखीर तक यह औरत मेरे साथ कैला बर्ताव करती है। और अब जहां तक हो, इससे भी बखुशी बचे रहना चाहिए, ताकि जान बची रहे; क्योंकि मुमकिन है कि यह हर भी मुझे अपन" मतलब निकाल कर मार डाले,जैसा कि उस ख़तमें लिखा हुआथा !!!

मुझे कुछ देर तक चुप देख कर वह औरत उठी और उठ कर उसने मुझे एक दा खिलाई और दूध पिलाया, फिर कहा,-" अब तुम मजे में लावा, खुदा ने चाहा तो कल शब को फिर में तुम्हले भुलाकात करूंगी। मैंने कहा,-क्या दिन के वक्त मुलाकात नहीं होगी ? उसने कहा --नहीं दिन के वक्त मैं लोगों की नजरों से गायत्र रहना मुनासिब नहीं सकती। मैंने कहा, "लेकिन,यह तो बतलाओ कि यहां पर तो आसमानीं न आयगी ?" पहा - मुमकिन तो ऐसा ही है कि या वह कंवल न भासते, लेकिन अगर वह इस मर्तक इधर आयगी तो फिर जिन्दी लौटकर यहां वापस न जालकेगी,क्योंकि इस कमरे में आनेके लिये सिर्फ एक ही रास्ता है, जो मेरे खास कमरे के अन्दर से है, जहां पर पहिलै यहिल तुम गये थे। मैंने कहा, "खैर तो अब शायद दघाने कुछ असर किया, क्यों कि नींद आने लगी, इसलिये मैं सोता हूँ । . उसने कहा,- वेहतर, सोचो, मैं भी अब जाती हूं।" इतना कहकर उसने मुझसे हाथ मिलाया और मैं परन पर अ कर लेट रहा । लेटते ही मुझो नींद आगई और फिर मुझो नहीं मालूम कि पीजमाल कर उस कमरे के बाहर गई, क्यों कि अब तक मैं जागता था, वह उस कमरे के अन्दर ही मौजूद थी।