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पृष्ठ:लवंगलता.djvu/१०

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परिच्छेद ]
आदर्शवाला।



तो अपनी जान लेकर वहांसे भागा, पर उस रडी को उस ज़ालिम ने जीती ही ईटे की दीवार मे चुनवा दिया। फिर तो वह मेरी जान लेने की फिक्र मे लगा, मगर अपनी वाल्दः और हमशीरा (मेरी- बीबी) के बहुत कुछ रोने गिड़गिडाने पर ख़ामोश हो गया। उसी रोज़ से मेरा दर्बार बद है और मुझे इस इमारत के अन्दर आने की सख़्त मुमानियत है।"

अमीचद, यह काम आपने बहुत ही बुरा किया था! जब कि वह रडी सिराजुद्दौला के क्रम में दाखिल हो चुकी थी, उसके साथ आपको किसी तरह का लगाव नहीं रखना था। अस्तु जो हुआ, सो हुआ, अब कहिए, आप मुझसे क्या कहनेवाले थे?"

सैय्यद अहमद,-"पेश्तर, आप यह बतलाइए कि इस वक्त आप किस गरज से यहां आए हुए है?"

अमीचंद, आपको यह नहीं मालूम है कि इन काफ़िर सौदागरों ने मेरा सर्वस्व नाश कर डाला! मेरा घर, द्वार, माल, मता और घर की औरतें, सब मिट्टी में मिल गई। इसी बात की शिकायत करने और अपनी नुक्सानी भर पाने के लिये मै नव्वाब साहब की खिदमत मे हाज़िर हुआ हूं, इसलिये कि यदि नव्वाब साहब की ओर से मेरी हिफ़ाज़त कीजाती तो मेरी इतनी बर्बादी कभी न होती।

सैय्यद अहमद,—(रोनी सूरत बनाकर) “अफ़सोस! सद अफ़सोस इस बात का है कि मै इस वक्त दर्बार से निकाला हुआ हूं, वरन मैं इस अमर मे आपको बखूबो मदद करता। खैर, मगर, साहब।मालूम होता है कि इस बात की आपको मुतलक ख़बर नहीं है कि इतना जुल्म आप पर अंग्रेज़ो ने किसके बहकाने से किया?"

अमीचंद,-(घबराकर) “ऐ किसके भड़काने से किया? मेरा बैरी कौन है? मैने किसके साथ बुराई की है? कृपाकर उस दुष्ट का नाम तो बतलाइए?"

सैय्यद अहमद, आप रगपुर के राजकुमार नरेन्द्रसिंह को जानते है?"

अमीचद,--"क्यो नहीं जानता! उनको तो मुझपर बड़ी कृपा रहती है!

सैय्यद अहमद,-"निहायत अफ़सोस के साथ कहना पड़ता