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पृष्ठ:लवंगलता.djvu/१२

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परिच्छेद ]
आदर्शवाला।


थोडी देर मे अमीचद की तलबी हुई और वे जाकर नव्वाब सिराजुद्दौला से मिले। उस समय वहां पर केवल सिराजुद्दौला और सेनापति मीरजाफ़रखां के और कोई न था, इसलिये मौका अच्छा समझकर पहिले तो अमीचंद ने अपना दुखडा रो-रो-कर कह सुनाया, परन्तु उस पर सिराजुद्दौला ने कुछ भी ध्यान न दिया और लल्लो-चप्पो करके उस बात को उड़ा दिया। यह क्यो? इसीलिये कि नव्वाब का जी अमीचंद की ओर से अभी अभी इस लिये फिर गया था कि उसने स्वयं अपनी आंखो से अमीचंद को सैय्यद अहमद से घुट-घुट कर बाते करते देखा था! पाठको को समझना चाहिए कि थोड़ी देर पहिले जिसने लताओ की ओट से अमोचद और सैय्यद अहमद को बातें करते देखा था, वह स्वयं नव्वाब सिराजुद्दौला ही था। यही कारण था कि उसने अमीचंद के दुखड़े पर कुछ भी ध्यान न देकर टाल-वाल कर दिया, पर उसकी उस उपेक्षा को सीधे-स्वभाव के अमीचद कुछ कुछ समझकर भी अवसर देखकर चुप रह गए। फिर उन्होने नरेन्द्र की जासूसी का हाल सिराजुद्दौला से कह सुनाया, क्यो कि सैय्यद अहमद ने उन्हें भली भाति नरेन्द्र के विरुद्ध भड़का दिया था, पर उन्होने यह न कहा कि, "यह हाल मैने सैय्यद अहमद से सुना है।"

यह एक ऐसा समाचार था कि जिसने सिराजुद्दौला के क्रोध की सीमा नहीं रक्खी! पहिले तो उसने नरेन्द्र को बहुत सीगालियां सुनाईं, फिर मीरजाफ़रखां को हुक्म दिया कि,-"उस शैतान को अभी गिरफ्तार करो और अपने मातहत फ़तहख़ा को हमारे सामने बुलाकर इस बात की ताकीद करो कि वह फ़ौरन नरेन्द्र को गिरफ्तार करे।"

अब क्या होसकता था! यद्यपि मीरजाफ़र अंगरेजों की ओर मिला हुआ था और उसीके द्वारा बहुत सा हाल नरेन्द्र को मिला करता था, पर अमीचंद की बात ने सिराजुद्दौला को इतना क्रुद्ध कर दिया था कि उसने नरेन्द्र की गिरफ्तारी का हुक्म अपने सामने दिया जाना उचित समझा। ऐसे अवसर मे मीरजाफ़र ने बड़ी फुर्ती का काम यह किया कि एक चीठी लिखकर पहिले नरेन्द्र के पास भेज दी, उसके बाद फतहखां को नव्वाब के सामने पेश किया।