पृष्ठ:लवंगलता.djvu/२७

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जाफ़र ने सिराजुद्दौला सरीखे चतुर मनुष्य को भी ऐसा अपने जाल मे फ़साया कि वह हर तरह से उस (मोरजाफ़र) की मुट्ठी मे आगया! फिर आपस मे कुछ सलाह ठहराकर अकेले में मीर-जाफर ने अपने लडके मीरन को खूब सिखाया-पढ़ाया और उसे खूब समझा बुझा कर सैय्यद अहमद के पास भेजा। उसके जाने के साथ ही दूसरी पोशीदः राह से मीरजाफ़र तथा कई सिपाहियों के साथ खुद सिराजुद्दौला भी वही पर जापहुंचा और एक लताकुंज मे छिपकर, जहासे मीरन और सैय्यद अहमद की सारी बातें भली भाति सुनाई देती थीं, ठहरा रहा।

मीरन ने जिस विचित्र ढग से बातें की, उसे पाठक गत परिच्छेद मे पढ़ ही चुके है और यह भी जान चुके हैं कि सैय्यद अहमद कैद की सासत भोगने के लिये जेलखाने भेजा जा चुका है!

यह सब होने पर सिराजुद्दौला ने सैय्यद अहमद के बाग़ और मकान की तलाशी ली किन्तु एक तस्वीर के अलावे उसके यहां से और कोई ऐसी चीज न मिली, जो सिराजुद्दौला के काम की होती! यदि चिट्ठियो का सदूक मीरजाफ़र ने पहिले ही न उठवा मंगाया होता तो आश्चर्य नहीं कि मीरजाफ़र की बग़ावत का भी बहुत कुछ सबूत उन चिट्टियों से नव्वाब को आज ही मिल जाता और मीरजाफर भी सैयद अहमद की तरह जेलखाने भेजा जाता!

निदान, सैय्यद अहमद के जेलखाने जाने के बाद मीरजाफ़र ने अपनी इन सब कार्रवाइयो के हाल को छिपाकर नरेन्द्र को केवल इतनी ही गुप्त सूचना दी थी कि,—'नव्वाब साहब से आपकी जासूमो के राज को सैयद अहमद के भड़काने से सेठ अमीचद ने खोला,[१] जिसमे सैयद अहमद को तो मैंने किसी ढब से जेल भिजवा ही दिया है, अब अमीचंद के बारे मे जो कुछ करना हो, आप कीजिएगा।'

किन्तु अमीचद जिस सर्वस्वनाशरूपी दुःख को पाचुके थे, उसके ऊपर और कुछ करना नरेन्द्र ने उचित न समझा, तथापि अमोचद की इस करनी का हाल नरेन्द्र ने क्लाइब साहब से अवश्य


  1. हृदयहारिणी उपन्यास के छठे परिच्छेद में जिसे गुप्तपत्र (तीसरे) का हाल लिखा गया है, वह इसी मीरजाफ़र का था।