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पृष्ठ:लवंगलता.djvu/३८

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परिच्छेद]
३४
आदर्शवाला


करेगी!"

लवंग॰—(ज़रा सा घूमकर और दोनों हाथो को फैलाकर) देखिये मेरी मुठ्ठी में तो कुछ भी नहीं है।"

मदन॰,—'मुट्ठी की तो एक बात थी! उसे आपने कहीं और ही छिपा रक्खा है।"

लवंग॰—,"मैंने आपका कुछ नहीं चुराया है, आप मुझ पर व्यर्थ झूठा दोष न लगाइए, और लाइए, मेरा हार दीजिए।"

मदन॰,—"ऐसा! यह बात आप शपथ-पूर्वक कहती है? क्या आप ईश्वर की साक्षी देकर यह कह रही है? क्या आपने मेरा कुछ भी नहीं लिया है?"

इतना सुनकर कुमारी लवंगलता सिर से पैर तक कांप उठी और प्रेमवैनित्य से इतनी विफल होगई कि खड़ी न रह सकी और कांप कर गिरने लगी। यदि मदनमोहन ने हाथ बढ़ाकर उसे सम्हाला न होता तो वह घुमटा खाकर वहीं गिर जाती!

निदान, लवंग मदनमोहन के हृदय में सिर रखकर कांपने लगी, उसके मारे शरीर से पमोने निकलने लगे और कलेजा बड़े जोर जोर से धड़कने लगा। मदनप हन ने धीरे धीरे उसे टहलाते हुए लेजा कर उनी माधवी कुंज के अन्दर स्फटिकशिला पर बैठाया और वह हार उसके गले में डाल, हाथ जोड़कर कहा—

"प्यारी! हृदयेश्वरी! क्या आप मेरे इस अपराध को क्षमा करेंगी?"

लवगलता कुछ देर तक कुछ भी न बोली तब मदनमोहन ने फिर कहा,—

सुन्दरी! क्या मेरे अपराध की क्षमा नहीं है?"

लवग॰.—"प्राणनाथ! दासो का एक भिक्षा दीजिएगा?"

मदन॰— "प्रिये प्राण तक तुम्हारे पादपन पर निछावर है।"

लवग॰,—मेरे सिर पर हार रखकर इस बात की कसम खाइयें कि जो ्गी्ग्गी््गी्गी्ग्गी््ग्गी्ग्गी््् वह दाजिएगा"

मदन॰—"आपके सिर पर हाथ रख कर!!! ऐसा मुझसे कमी न होगा, किन्तु, हाँ! मैं ईश्वर की शपथ खाकर कहता हूं कि जो आप चाहेंगी प्राण रहते मैं उससे बाहर न दूंगा।"

लवग॰,—" तो मैं यही चाहती हूँ कि अब से आप इस दासी