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पृष्ठ:लवंगलता.djvu/४

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श्रीः
द्वितीय संस्करण का निवेदन।

बहुत दिनों के बाद आज यह अवसर आकर प्राप्त हुआ कि लवंगलता और हृदयहारिणी का द्वितीय संस्करण हिन्दी के रसिक उपन्यास-प्रेमियों के आगे हम पुनः उपस्थित कर सके। यद्यपि ये दोनो उपन्यास कई वर्ष पूर्व ही निःशेष होचुके थे, परन्तु बिना निज के प्रेस के, इनका तथा हमारी अन्यान्य पुस्तकों का पुनः छपना दुर्घट था। सो वह दिक्कत भी ईश्वगनुगह से दूर होगई और हमने "श्रीसुदर्शनप्रेस" नामक मुद्रणालय स्थापित कर दिया। अब हमारी पुस्तकों—विशेष कर उपन्यासों के छपने में कोई अड़चन न होगी; और—"उपन्यास" नाम को 'मासिक-पुस्तक, जो प्रेस के न होने के कारण कई वर्षो से बन्द थी, अब वह नई सजधज के साथ निकाली जायगी। अतएवं हिंदी के प्रेमी और उपन्यास के रसिकों को अब शीघ्र अपना अपना नाम ग्राहक श्रेणी में जल्द लिखा लेना चाहिए! यहाँ पर यह भी उपन्यास के प्रेमी पाठकों को समझ लेना चाहिए कि "लखनऊ की कद्र हमारा उपन्यास जो अभी तक अधूरा है, वह भी "उपन्यास" मासिक पुस्तक द्वारा पूरा कर दिया जायगा।

हमारे जो उपन्यास प्रथम संस्करण के निःशेष होगए हैं,—जैसे चपला, स्वर्गीयकुसुम, राजकुमारी इत्यादि—चे पुनः छप रहे हैं और बहुत जल्द उपन्यास-प्रेमियों के दृष्टिगोचर होंगे।

अन्त में हम हिन्दी के रसिक उपन्यास-प्रेमियों को अनेक-हार्दिक धन्यवाद देते है कि आपलोगों ने हमारे उपन्यासों की बड़ी ही कद्र की और इन्हें हिन्दी के उच्च कोटि के उपन्यासों में गिना। आशा है कि ईश्वरानुग्रह से हम इसी प्रकार जीवन-पर्यन्त अपने उपन्यासों से आपलोगो का मनोरञ्जन किया करेंगे।

वृन्दावन

रसिकानुगामी—

 
ता॰ १ जनवरी, सन् १९१५ ई॰

श्रीकिशोरीलालगोस्वामी