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पृष्ठ:लवंगलता.djvu/५२

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परिच्छेद]
५१
आदर्शवाला।


 

नवां परिच्छेद.
अनुसन्धान।

"कान्तर्हिता प्रिया हन्त! राहुप्रस्तेव कौमुदी?"

(सुभाषितम्)

कुछ रात रहते ही महल मे हाहाकार मच उठा। कुमारी लवंगलता के अन्तर्धान होने का समाचार उसी समय कुमार मदनमोहन के कानो में पहुंचा, जिसे सुनते ही वे घबराकर महल में दौड़ आए और वहां आकर उन्होंने जो कुछ देखा, उससे वे कलेजा पकड़कर धरती में बैठ गए। कुमारी लवंगलता का पलग खाली था, वहांपर जितनी दासियां थी, सबकी सब बधी हुई थी और उनके मुंह में लत्ता ढूंसा हुआ था। मदनमोहन ने सब दासियो के बंधन खुलवा दिए और पूछनेक्षपर उन सभो ने यही कहा कि,—"कई नकाबपोश आधीरात पीछे महल में घुस आए थे; उन्होंने हमसभी की यह दशा की और कुमारी को पलंग की चादर में बांध महल से बाहर होगए।

देखते देखते सबेरा होगया और खोज ढूंढ करने से मालूम हुआ कि 'डांकू बाग के रास्ते से महल मे घुसे थे, और कुमारी को उठाकर उनी ओर से बाहर होगए! तुरत मदनमोहन ने सैकड़ों सवारो को कुमारी के पता लगाने के लिये चारोओर दौड़ाया और मन्त्री माधवासह के साथ वे इस बात की सलाह करने लगे कि,—"अब क्या करना चाहिए?"

मंत्री ने सवारो के लौट आने तक चुपचाप बैठे रहने की सलाह दी और उस पत्र की व्याख्या करके, जो सिपहसालार शेरसिह के हाथ से पाकर मदनमोहन ने लवगलता को दिया था, मदनमोहन को समझाया कि—यह काम दुराचारी सिराजुद्दौला के अतिरिक्त ओर किसीका नही है। यही बात मदनमोहन ने भी विचारी थी सो मंत्री की मम्मति से अपनी सम्मति मिलजाने पर वे बहुत ही क्रु द्ध हुप और तुरन्त मुर्शिदाबाद पर चढ़ाई कर देने के लिये उद्यत