पलासी की लड़ाई का जो कुछ परिणाम हुआ, उसके कहने की यहां पर यद्यपि कोई आवश्यकता नहीं है, क्यो कि इतिहास के मर्मज्ञ पाठक उस बात को इतिहास द्वारा भलीभांति जानते हो होगे; किन्तु तौ भी हम आगे चलकर उस लड़ाई का सारा हाल संक्षेप में लिखेगे; किन्तु यहां पर संक्षेप में इतना हम अवश्य कहेंगे कि उस युद्ध में सिराजुद्दौला का सम्पूर्ण पराजय हुआ, वह मीरजाफ़र के लड़के मीरन के हाथ से मारा गया और मीरजाफ़रखां ने अगरेज़ों के प्रमाद-स्वरूप बंगाल के नवाब को गद्दी पाई। नरेन्द्रसिंह भी यशस्वी होकर लौट आए और आने पर उन्होंने प्रथम तो बड़े धूम धाम से अपने पिता का श्राद्ध किया, तदनंतर मदनमोहन के साथ अपनी प्यारी बहिन लवंगलता का विवाह कर दिया और अंत में कुसुमकुमारी को अपनी पटरानी बनाया।
पाठक। हृदयहारिणी उपन्यास में लवंगलता के विवाह का हाल हम लिख आए हैं, और यहांपर भी हमने बड़े सक्षेप में ही उसके विवाह को करा दिया, इससे कदाचित आपलोग चिहुंकेगे और मन ही मन यह कहने लगेंगे कि,—'ऐं! एक राजनन्दिनी का विवाह इतने संक्षेप में करा डाला गया।" परन्तु पाठक इसमें चिहुंकने की कोई बात नहीं है और यदि कुछ है. तो केवल इतनी ही है कि यदि आपलोगो मे से किसी ने बड़े धूमधाम के कोई ब्याह देखे हों तो उन्हे एक लाख से गुन दीजिए और गुनने पर जो कुछ पलब्ध हो, लवंगलता के ब्याह मे उसी प्रकार के धूमधाम की कल्पना कर लीजिए!
कहने का तात्पर्य केवल इतना ही है कि दिनाजपुर से बड़े समारोह के साथ बारात आई और नरेन्द्र सिंह ने मदनमोहन के कर में अपनी प्यारी बहिन लवंगलता को सम्प्रदान किया।
उस दिन जब कोहबर में लवगलता और मदनमोहन गए थे, तो कुसुमकुमारी की विचित्र छेड़छाड़ ने एक अनोखा रंग जमाया था[१]
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- ↑ हृदयहारणी उपन्यास का पंद्रहवां परिच्छेद देखो।