पृष्ठ:लवंगलता.djvu/८८

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परिच्छेद
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आदर्शवाला।



उसकी वह हालत देख, लुत्फ़उन्निसा ने मुस्कुराहट को अपने ओठों में दबाकर बड़ी सफ़ाई के साथ कहा,—"अफ़ोल है कि उस औरत को बदकिस्मतो हो ने उसे हुजूर के साये तले न रहने दिया! अगर उसका किस्मत उसका साथ देगा न करता तो आज अजाद था कि दुजूर उने मालामाल कर देते और वह बडो शानोशौकत के साथ अपनी औकात-ब-री करती!!!"

लुत्फ़उन्निसा के इस प्रकार के कथन का कुछ ढग ही निराला था, जिसे सुन सिराजुद्दौला ने अपना सिर ऊंचा किया और लुत्फ़उन्निा की ओर देख मुस्कुराकर कहा, "प्यारी लुत्फ़उनिसा मैं तो यो समझता था कि मेरी इस दगाबाज़ी का हाल सुनकर तुम निहायत रजीदा होगी और अजन्न नहीं कि मेरे साथ फिर किसी किस्म का ताल्लुक ही तुम न रक्खोगी!"

लुत्फ़॰, अल्लाह आलम! भला, मैं क्यों रंज होने लगी थी! हुजूर! मेरा तो यह कोल है कि,—'राज़ी हूँ मैं उसी मे, जिसमें तेरी रज़ा है।' मगर खैर, अब आप बेफाइदे अफ़सोस करके क्या करेगे, जब कि वह सोने की चिड़िया जाल में फंसकर भी निकल गई!!!"

सिराजु॰,—" बस, प्यारी! अब तुम मुझे ज़ियादह शर्मिन्दा न कग! मैने तुम्हारे साथ बड, दगा की! ब; अफसोस का मुकाम है कि मैंने तुम्हारे साथ कैसे कैसे वादे किए थे, मगर उनका मुतलक ख़याल मैंने न किया और..."

लुत्फ॰,—" अय, हुजूर! आप यह क्या कह रहे है? सच जानिए, मैं आपसे सच कहती हूँ कि मेरे दिल में कोई दूसरा ख़याल नहीं है!"

सिराजु॰,—"मगर, प्यारी! यह तो बतलाओ कि तुम्हें मेरी इस दग़ाबाजी का हाल क्यों कर मालूम हुआ?

लुत्फ॰,—"मुझसे आपका कौन सा हाल छिपा है! क्या आपने उस कुसुमकुमारी नाम की लड़की के पकड़ लाने के लिये भी अपने आदमी नहीं भेजे थे, जिसे रगपुर के महागज नरेन्द्र.सह अपने साब लेगए हैं! और न्वा वह हाल भी आप मुझसे सुना चाहते हैं, जिस ढब से आपने लवगलता की तस्वीर पाई और नज़ीर वगैरह अपने आदमियों को भेज उसे पकड़वा मंगाया और उस गोल