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(उन्नीसवां
लवङ्गलता।



अमीचन्द,—"मगर, साहब! वह तो लाल काग़ज था

क्लाइव,—"जी हां, लेकिन वह लाल काग़ज़ सिर्फ आपको सब्ज़बाग़ दिखलाने के लिये ही लिखा गया था, इसवास्ते इन रुपयों में से आपको एक कौड़ी भी न मिलेगी।"

यह सुनते ही अमीचन्द चक्कर खाकर धरती पर गिर बेसुध होगए और उनके नौकर-चाकर उन्हें पालकी मे डाल घर उठा लाए! जब वे होश में आए, तब पागलपने की बातें करने लगे और उसी अवस्था मे डेढ़ बरस तक अपने कर्मोंका फल भोगकर परलोक सिधारे!

राजा शिवप्रसाद सदा अंगरेज़ों की खुशामद करते रहे, पर क्लाइब की यह बात उन्हें भी बुरी लगी और उन्होंने भी उसके लिये यों लिखा कि,—"अफ़सोस है कि क्लाइब ऐसे मर्द से ऐसी बात ज़हूर मे आवे' पर क्या करें, ईश्वर को मजूर है कि आदमी का कोई काम बेऐब न रहे। इस मुल्क में अगरेजी अमल्दारी शुरू से आज तक मुआमले की सफाई और कौलकरार की सचाई मे मानो धोबी की धोई हुई सफ़ेद चादर रही है, केवल इसी अमीचंद ने उसमे यह एक छींटा सा लगा दिया है!"

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उन्नीसवां परिच्छेद.
पाप का प्रायश्चित्त

'अन्तःप्रच्छन्नपापानां शास्ता वैवस्वतो यमः।

(महाभारत)

पलासी की लड़ाई मे हारकर भागा हुआ सिराजुद्दौला मुर्शिदाबाद में आया, किन्तु वहां भी उसके पैर न जमेती क्योकि अपने दुराचरण के कारण उसे किसी पर कुछ भरोसा तो था ही नहीं! और भरोसा भी तो उसे तय होसकता था, जब कि उसने कभी किसी के साथ कुछ भलाई की होती! निदान, अपनी सैकड़ों गमों में से दो बेगम, एक खोजा और कुछ जवाहिरात साथ लेकर वह मुर्शिदाबाद से रात के समय भागा;