पृष्ठ:लालारुख़.djvu/३३

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वाचन . हटा कर नीचे गिरा दिया। एक पीजी किन्तु अभूतपूर्व मूर्ति, जिसके नेत्रों में पानी और होठों में रस था, मामने दीख पड़ी। इलाहीवश ने आँखों की धुन्ध आँखों से पोंछ कर जरा आगे बड़ कर कहा- तुम्हें. आपको मैंने कहीं देखा है ? "जी हाँ, मेरे आकर मेरे दादाजान की मिहरवानी से, लाल किले के भीतर, जब आप मेरी डोली में लगाए जाने के लिए चाबुकों से लहू-लुहान किए गए थे, तब वह बदनसीब गुलबानू आपको नसल्ला देने तथा और भी कुछ देने आपकी खिदमन में आई थी। उम्मीद थी, मई औरत की अमानत- खासकर वह अमानन, जो दुनिया का चीज़ नहीं, जिसके दाम जान और कुर्बानी है, सँभालकर रखेंगे। पर पीछे यह जानने का कोई जरिया ही न रहा कि हुजूर ने वह अमानत किस हिफाजत से कहाँ छिपा कर रखी ? ग़दर में वह रही या मेरे बाबाजान के तहत के साथ वह भी गई? इलाहाबरूस का मुंह काला पड़ गया। बदहवासी की हालत में उनके मुँह से निकल पड़ा-आप शाहजादी गुलबानूxxx? गुलबानू ने शान्त स्वर में कहा-वहीं हूँ जनाब ! मगर डरिएगा नहीं ! अगर गदर में मेरा अमानत लुट भी गई होगी, तो वह माँगने जनाब की खिदमत में नहीं आई हूँ। अब गुल- बानू शाहजादी नहीं, हुजूर की कनीज़ है-महज़ बाचिन है ! मेरे आका, क्या बाँदी के हाथ का खाना पसन्द आया ? क्या बदनसीब गुलबानू की नौकरी बहाल रह सकेगी? इलाहीबख्श बेहोश होने लगे। वे सिर पकड़कर वहीं बैठ गए । गुलबानू ने पङ्खा लेकर झलते हुए कहा-जनाब के दुश्मनों की तबीयत नासाज तो नहीं, क्या किसी को बुलाऊँ ? २५