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लेखाञ्जलि

डिपटी कमिश्नरोंको दफ़ा ६२ (अ), ६७ और ६८ (अ) के मुतल्लिक कुच हिदायतें की हैं। वे इस मतलबसे की गयी हैं कि किसानोंपर ज़ियादह सख़्ती न की जाय। यह बात कोर्ट आफ वार्डस्‌की पिछली (१९२२-२३) की रिपोर्ट में बोर्ड आफ् रेवेन्यूके सेक्रेटरीने खुद ही क़बूल की है। उन्होंने लिखा है— "In order to prevent undue pressure from being brought on the tenants of Oudh estates by Subordinate officials and in order to modify the severity of the sections, the Board have recently issued executive instructions to all Deputy Commissioners regarding the policy to be followed in sanctioning ejectments under sections 62A, and 65A of the Oudh Rent Act as amended."

क़ानून बनाते समय तो, शायद तअल्लुक़ेदारोंके मुलाहज़ेमें आकर, गवर्नमेंट चुप रही—उसने ये सब दफाएं "पास" हो जाने दीं। अब पीछेसे वह उनकी सख़्ती कम करने चली है। परन्तु करेगी वह कहाँतक कम। १९२२-२३ में कोई एक हज़ार बेदखलियाँ फिर भी किसानोंके ऊपर अदालतोंमें दायर हो ही गयीं। यह संख्या गवर्नमेंटने कौंसिलमें २४ मार्च १९२४ को, प्रश्न नम्बर ३२ के उत्तरमें, बतानेकी कृपा की है। यदि किसान सङ्गठित होते और वे ऐसे ही प्रतिनिधियोंको कौंसिलमें भेजते जो अपने कर्तव्यका पालन दृढ़तापूर्वक करते तो यह दुरवस्था कदापि न होती और उनके मुँहकी रोटी छीनी जानेका उपक्रम इतनी निर्दयतासे कदापि न होता।