29 . उत्तरकोशल अयोध्या की मुख्य उत्तर कोशल की गद्दी पर जिस समय दशरथ अबाध शासन कर रहे थे, उसी समय उत्तर कोशल -वंश के कुछ शाखा - राज्य भी बहुत सम्पन्न थे, जिनका उल्लेख हम कर चुके हैं । इन्हीं में एक राज्य अनरण्य ने स्थापित किया था । यह अनरण्य राजा दशरथ से छ:- सात पीढ़ी प्रथम सिन्धु द्वीप राजा का पुत्र था । यह राज्य कान्यकुब्ज के निकट कहीं था । इस शाखा का त्रैयारुण राजा वेदज्ञ और प्रतापी था । यारुण का पत्र सत्यव्रत था , जिसका त्रिशंकु नाम युवराज - काल ही में प्रसिद्ध हो चुका था । इसका कारण यह था कि उससे तीन गुरुतर अपराध हो चुके थे। प्रथम तो उसने एक ऋषि की नवपरिणीता वधू के साथ बलात्कार किया । दूसरे , चाण्डालों के साथ रहने तथा खाने - पीने लगा। तीसरे, कुलगुरु वशिष्ठ की एक गाय मारकर वह खा गया । इन तीन गुरुतर अपराधों के कारण उसके पिता ने उसे त्रिशंकु का दुर्नाम दिया और कुलगुरु वशिष्ठ की सलाह से उसे यौवराज्य - पद से च्युत कर दिया । त्रिशंकु पिता का कोपभाजन तथा राज्याधिकार से च्युत होकर वन में भाग गया । कालान्तर में त्रैयारुण की मृत्यु हुई परन्तु त्रिशंकु को राज्य नहीं मिला । मंत्री , वशिष्ठ ही राज चलाने लगे । इसी समय एक भयंकर बारह वर्ष का अकाल पड़ा , जिससे प्रजा वशिष्ठ से असन्तुष्ट हो गई। इस समय घात पाकर कान्यकुब्ज नरेश विश्वामित्र ने इस राज्य पर आक्रमण कर दिया । वशिष्ठ ने शबरों और म्लेच्छों की सेना संग्रह कर विश्वामित्र को पराजित किया । युद्ध में पराजय से लज्जित और लांछित होकर विश्वामित्र अपने राज्य में नहीं लौटे - वन में चले गए । राज्य पर उनका पुत्र अधिकारी हो गया । वन में त्रिशंकु ने विश्वामित्र की अच्छी आवभगत की । उन्हें बहुत सहायता पहुंचाई । उनके परिवार का पालन किया । इसके बाद विश्वामित्र और त्रिशंकु के सम्मिलित उद्योगों से त्रिशंकु अपने पिता की गद्दी पर आसीन हुआ। इस पर वशिष्ठत्रिशंकु और विश्वामित्र दोनों ही के वैरी बन गए, परन्तु राज्य के मंत्री और पुरोहित बने ही रहे । कुछ दिन बाद त्रिशंकु ने यज्ञ करना चाहा , परन्तु वशिष्ठ ने यज्ञ कराने से साफ इन्कार कर दिया । इस पर त्रिशंकु ने विश्वामित्र से ऋत्विज बनकर यज्ञ कराने को कहा । विश्वामित्र राजी हो गए । परन्तु वशिष्ठ का विरोध साधारण न था । वे एक सहस्र वटुकों के कुलपति थे। वेद -निर्माता ऋषि थे। राजमन्त्री थे। उनके प्रभावों से कोई ऋषि और देवता त्रिशंकु के यज्ञ में नहीं आया । इस पर विश्वामित्र ने कुपित होकर कहा – मैं नए देवताओं की स्थापना करूंगा। अन्त में देवताओं ने यज्ञ - भाग ग्रहण किया , परन्तु इस राज्य की पुरोहिताई वशिष्ठ ने छोड़ दी - विश्वामित्र उसके पुरोहित हो गए । ____ वह राज्य त्यागकर वशिष्ठ उत्तर पांचाल -नरेश सुदास के राज्य में पहुंचे और उस राजा के मंत्री और पुरोहित बन गए । दश राजाओं के युद्ध में वशिष्ठ ने सुदास की बड़ी
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