30 . अनार्य जन अनार्यों की भी भारत और भारत की सीमाओं पर उन दिनों अनेक जातियां थीं । इनमें महिष , कपि , नाग , मृग, ऋक्ष, व्रात्य , आर्जिक , राक्षस , दैत्य, दानव , कीकट, महावृष , वालीक , मूंजवन आदि प्रमुख थीं । इनका संयुक्त नाम अनार्य था । किन्तु कुछ जातियों को यातुधान , दस्यु और सिम्यु भी कहा गया । ___ मानवशास्त्रियों का कहना है कि आजकल शुद्धतम आर्यों के वंशधर केवल कश्मीर , पंजाब और राजस्थान की कुछ जातियां हैं । गंगा - यमुना की घाटियों और बिहार की जातियों में आर्यों और द्रविड़ों का मिश्रण है। कीकट गया प्रान्त के निवासी थे। गुजरात , सिन्ध , बम्बई में सीदियन तथा द्रविड़ों की मिश्रित जातियां हैं । नेपाल, भूटान, आसाम आदि में मंगोल- द्रविड़ों का मिश्रण है। वायव्य सीमाप्रान्त के लोग तुरुष्क हैं , जिन्हें तुर्की ईरानी भी कहा जाता है । मैसूर प्रान्त ही महिषमण्डल था । अत्यन्त प्राचीन काल में यहां आर्यों की विरोधिनी महिष जाति रहती थी । रावण के काल में हैहय कार्तवीर्य अर्जुन यहां राज्य करते थे। कपि या वानरों का राज्य किष्किन्धा में था । वर्तमान टोड़ा जाति के लोग, जो दक्षिण भारत में हैं , संभवत : इन्हीं के वंशधर हैं । ऋक्ष भी उन्हीं प्रान्तों में एक जाति थी । ये वास्तव में द्रविड़ जातियों के बान्धव थे। कपियों की राजधानी किष्किन्धा बहुत सम्पन्न थी और वहां का स्वामी बाली अजेय योद्धा था । नागों में शेष , वासुकि , तक्षक, धृतराष्ट्र आदि प्रमुख राजा थे। इनके वंश दक्षिण के द्वीप - समूहों में तथा समुद्री तट- प्रान्तों में राज्य करते थे । पाताल नाग -लोक कहाता था । संभवत : सिन्ध में एक नगर पाताल नामक था , जहां वासुकि राज्य करता था । वहां से बेबीलोन तक भारतीय व्यापार होता था । पूर्वी बंगाल के समुद्र - तट पर भी नागों की बस्तियां थीं । छोटा नागपुर का उत्तरी अंचल इनका मुख्य केन्द्र था । नागों के वैवाहिक सम्बन्ध आर्यों और अनार्यों में समान भाव से होते थे। सर्वप्रथम काश्यप सागर का मन्थन देवों , दैत्यों और नागों ने ही मिलकर किया था । उत्तंक ऋषि ने अपने खोए हुए कुण्डल किसी नाग, नरपति से ही छीने थे। लंका के समुद्र की रक्षिका सुरसा नागमाता थी ,जिससे हनुमान की मुठभेड़ हुई थी । बलि को कैद करके आदित्यों ने नागों ही के संरक्षण में पाताल भेजा था । आर्य युवनाश्व और हर्यश्व ने अपनी बहिन धूम्रवर्ण नाग को ब्याही थी । उसी की पांच कन्याओं का विवाह हर्यश्व के दत्तक पुत्र यदु के साथ हुआ था । आस्तीक इन्हीं का पुत्र था । नागों का यह वंश बहुत आधुनिक काल तक भारत में चलता रहा। कृष्ण ने वृन्दावन के निकट कालीय नाग को पराजित किया और उसे वहां से खदेड़कर समुद्र - तट पर बसने को विवश किया था । रामपुत्र कुश ने भी एक नागकन्या से विवाह किया था । आगे चलकर महाराज जनमेजय से नागों का घोर युद्ध हुआ , जिसने अनगिनत नागों को हवनकुण्ड में जीवित ही झोंक दिया था । इतिहासकार कहते हैं कि नागों ने ही
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