रावण ने नई रक्ष - संस्कृति की स्थापना की और कुबेर को लंका से खदेड़ दिया , तो यह यक्षिणी लंका से नहीं गई - उसने अपने पुत्र मारीच सहित उसका राक्षस - धर्म स्वीकार कर लिया । मारीच को साहसी तरुण देख रावण ने उसे प्रथम अपने सेनानायकों में और फिर मन्त्रियों में स्थान दे दिया । अब जब रावण का अभिप्राय ताड़का ने सुना तो उसने रावण के निकट जाकर कहा - “ हे रक्षराज , आप अनुमति दें तो मैं आपकी योजना पूर्ति में सहायता करूं । आप मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनिए। मेरा पिता सुकेतु यक्ष महाप्रतापी था । भरतखण्ड में नैमिषारण्य में उसका राज्य था । उसने मुझे सब शस्त्र - शास्त्रों की पुरुषोचित शिक्षा दी थी और मेरा विवाह धर्मात्मा जम्भ के पुत्र सुन्द से कर दिया था , जिसे उस पाखण्डी ऋषि अगस्त्य ने मार डाला । अब उस वैर को हृदय में रख मैं अपने पुत्र को ले जा रही हूं । यदि सत्य ही आप आर्यावर्त पर अभिायान करना चाहते हैं , तो मुझे और मेरे पुत्र मारीच को कुछ राक्षस सुभट देकर नैमिषारण्य में भेज दीजिए , जिससे समय आने पर हम आपकी सेवा कर सकें । वहां हमारे इष्ट-मित्र , सम्बन्धी- सहायक बहुत हैं , जो सभी राक्षस - धर्म स्वीकार कर लेंगे। ” ताड़का की यह बात रावण ने मान ली ; उसे राक्षस भटों का एक अच्छा दल देकर तथा उसी के पुत्र मारीच को उनका सेनानायक बनाकर तथा सुबाहु राक्षस को उसका साथी बनाकर नैमिषारण्य में भेज दिया । आजकल बिहार प्रान्त में जो शाहाबाद जिला है वही उस काल में नैमिषारण्य कहाता था । इस प्रकार भारत में रावण के दो सैनिक- सन्निवेश स्थापित हो गए। एक दण्डकारण्य में जहां आज नासिक का सुन्दर नगर है; दूसरा नैमिषारण्य में -जहां आज शाहाबाद शहर बसा हुआ है - सोन और गंगा -संगम के निकट ।
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