लगे । उनसे रुधिर की नदी बह चली , मृत वीरों के शरीर ग्राह- से तैरने लगे । कोई सुभट सुभट से द्वन्द्व करने लगा। किसी ने अर्धचन्द्र बाण से किसी का सिर काट लिया । किसी के मर्मस्थल में बाण घुस जाने से वह चीत्कार कर घूर्णित - सा भूमि पर गिर गया । देवों की विकट मार से विकल होकर असुर इधर - उधर भागने लगे । यह देख शम्बर ने बाणों की विकट वर्षा का दिवोदास के सारथी को मार दिया । उसके घोड़े भी मर गए । यह देख असुरों ने बड़ा भारी जयनाद दिया । इस पर दिवोदास रथ से कूदकर शम्बर के रथ पर चढ़ गया । उसने उसका धनुष काट दिया तथा ध्वजा गिरा दी । यह देख बड़े- बड़े विकट असुरों ने पांचालपति को घेर लिया । विद्याधरों के राजा विकृतदंष्ट्र पंचरथ ने यह देखा तो वह समुद्र गर्जना की भांति महानाद करता हुआ असुरों के दल पर पिल पड़ा । गन्धर्वो का विकट विक्रम देख असुर भयभीत होकर भागने लगे। शम्बर ने यह देखा तो हुंकार भरकर अपना रथ उसी ओर बढ़ाया और प्रबल पराक्रम से उनके सारथी , ध्वजा , रथ तथा घोड़ों को मार कुण्डल समेत उसका सिर काट लिया । ___ महाराज दशरथ के साथ कैकेयी धनुष- बाण ले राजा के पृष्ठ की रक्षा कर रही थी । महाराज दशरथ अपने यूथपों को ललकारकर विकृतदंष्ट्र का बदला लेने आगे बढ़े। उनका क्रोध देख और प्रचण्ड बाण -वर्षा से व्याकुल हो असुर चीत्कार कर भागने लगे। कुछ बाणों से विद्ध हो - होकर मरने लगे। इस पर कंकट - अंकुरी, प्रचण्ड और कालकम्पन - इन चार असुर यूथपतियों ने बाण-वर्षा से दशरथ के रथ की धज्जियां उड़ा दीं । घोड़े मार डाले, चक्र तोड़ डाले । इस पर महाराज दशरथ रथ से कूदकर खड्ग और चक्र चलाने लगे। असुर यूथपतियों ने उन्हें चारों ओर से दबोच लिया । उनका अंग बाणों से बिंधकर छलनी हो गया । इस पर विकट साहसकर रानी कैकेयी ने एक हाथ में चक्र को संभालकर घायल राजा को रथ पर बैठाकर बाण -वर्षा करनी आरम्भ कर दी । पांचालपति दिवोदास ने दूर से महाराज दशरथ का यह संकट देखा । वह अपने दस सहस्र अतिरथों को ललकारकर उधर बढ़ा। उसने विकट पराक्रम से दशरथ का मूर्च्छित शरीर अपने रथ पर डाल , उन्हें निरापद स्थान में भेज दिया । फिर वह दूसरे रथ पर आरूढ़ हुआ , जिसमें सोलह श्यामकर्ण घोड़े जुते थे । अब उसने कालचक्र धनुष पर विकट महास्त्र चढ़ाकर उसका प्रहार किया । यह महास्त्र असुर यूथपतियों को काट- काटकर ढेर करने लगा । इस समय तक हाथी, घोड़े और योद्धा इतने मर चुके थे कि चारों ओर रणस्थली में कबन्ध दीख पड़ते थे। इस प्रकार असुरों का मर्दन देख असुरराज शम्बर दिवोदास के रथ की ओर बढ़ा। उसका सूर्य के समान ज्वलन्त रथ अपनी सहस्रों घंटियों की रणत्कार से रण -निमन्त्रण देता हुआ - सा पांचालपति के सम्मुख आ खड़ा हुआ। अब दोनों महावीरों ने ऐसा विकट युद्ध किया कि असुर , देव , गन्धर्व, मनुष्य सब कोई हाथ रोककर उनका द्वन्द्व देखने लगे । देखते ही - देखते दोनों के रथों के सारथी मर गए । रथों की धज्जियां उड़ गईं और दोनों विरथ हो परस्पर खड्ग - युद्ध करने लगे । दोनों ने एक प्रहर प्रचण्ड युद्ध किया । उससे शरीर से रक्त की सहस्र धाराएं बह चलीं । इसी समय अवसर पाकर दिवोदास ने शम्बर का सिर काट लिया । सिर कटने पर भी दो मुहूर्त तक उसका कबन्ध लड़ा । असुर का कबन्ध गिरते ही देवों ने विजय - शंखध्वनि की । असुर भयभीत होकर रक्त के कीचड़ में लथपथ युद्ध- भूमि से भाग चले । इसी समय सूर्य अस्ताचल को गए। पांचालपति दिवोदास विजय के नगाड़े बजाता
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