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पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१४६

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दक्ष ने यज्ञ किया। यज्ञ में देव , पितर, ऋषि, नाग , यक्ष, वरुण आदि सभी युग - पुरुष आए। अत्रि , पुलह, क्रतु, इन्द्र , वशिष्ठ भी बुलाए गए। विधिवत् चातुर्होत्र की वहां स्थापना की गई । वशिष्ठ होता, अंगिरा, अध्वर्यु, बृहस्पति उद्गाता और नारद ब्रह्मा हुए । आठों वसु , बारहों आदित्य , दोनों अश्विनीकुमार , उनचास मरुद्रण , वहां एकत्र हुए । बहुत भारी समारोह हुआ। दस योजन भूमि में यज्ञ - समारोह हुआ। ___ यहां यज्ञ - समारोह के सम्बन्ध में भी मैं कुछ कहूंगा। यह एक प्रकार की अग्नि - पूजा थी , जो इलावर्त और आसपास के देव , दैत्य सभी में प्रचलित हो गई थी । मैंने बताया है कि देमाबन्द पर्वत पर काश्यप प्रदेश में एक स्थान बाकू है, जहां भूमि से अग्नि निकलती है । इसी से ईरानी लोग अग्नि की पूजा करते हैं । उसी अग्नि की पूजा का प्रचलन देवों , आर्यों में यज्ञ - रूप से हुआ । पारसी लोग भी अग्नि - पूजक हैं । उनकी अगियारी में सैकड़ों वर्ष की अखण्ड अग्नि रहती है । धीरे - धीरे यह साधारण अग्नि - पूजन, जहां- जहां आदित्य गए, यज्ञ के रूप में साथ लेते गए। पीछे इसमें और विधियों का भी समावेश हुआ और यज्ञ के समारोह धीरे - धीरे सब सामाजिक और राजनीतिक प्रश्नों के निपटारे के मूल समारोह हो गए । यज्ञों ही में देवों की भूमि तथा दाय का बंटवारा होता था । यज्ञ - भाग पाकर ही देव अपना निर्वाह करते थे। इस यज्ञ में दक्ष प्राचेतस ने रुद्र को नहीं बुलाया । यज्ञ में न बुलाने का अभिप्राय अपमान ही न था ; मुख्य अभिप्राय यह भी था कि उन्हें यज्ञ -भाग न मिले । वास्तव में देवों का सब कुछ यौथ समाज था । पृथक्- संपत्ति किसी की न थी । यज्ञ समारोहों में एकत्र सामग्री यज्ञ - भाग कहकर बांटी जाती थी । रुद्र को न बुलाना सरासर रुद्र को उनके भाग से वंचित करना था । परन्तु रुद्र की पत्नी सती, बिना बुलाए ही यज्ञ में पिता के घर चली आई । उसने पिता से कहा - “ आपके यज्ञ में सम्पूर्ण देव और ऋषि पधारे हैं । हमारी सब बहनें , बहनोई , भांजे सपरिवार आए हैं । तब क्या कारण है कि आपने हम लोगों को नहीं बुलाया ? मेरे पति को आपने यज्ञ - भाग से वंचित कर दिया ? " दक्ष ने कहा - “ रुद्र वैदिक मर्यादा नहीं मानते । देवों को कुछ समझते नहीं हैं । त्रिशूल और दण्ड धारण करते हैं । आत्म - यज्ञ का प्रचार करते हैं । नागों के साथ रहते हैं । उनके गण भी चोर, डाकू , दस्यु हैं । यह सब उनका अभद्र आचरण है । इस अभद्र आचरण, अभद्र वेश में वे कैसे देवों के साथ बैठ सकते हैं ? ” इस पर सती ने क्रोधित होकर कहा - “जिन्हें आप अभद्र कहकर निन्दा करते हैं , उन्हीं के तेज और प्रभाव से देव निर्भय हैं । आप उनके प्रताप को नहीं जानते । मैं अपने पति का अपमान नहीं सह सकती । ” यह कहकर वह सबके देखते - देखते ही धधकते हुए यज्ञकुण्ड में कूद गई । देव , नाग , गन्धर्व, मरुत् , गुह्यक – “ यह क्या ? यह क्या ? " कहते ही रह गए। देव , ऋषि सब भयभीत हो गए । सती जल मरी - यह सूचना पाकर , रुद्र ने क्रुद्ध हो , नन्दीगणों को दक्ष का यज्ञ विध्वंस करने को भेज दिया । गणों के दल -बादल यज्ञ पर छा गए। देखते - देखते उन्होंने दक्ष - यज्ञ विध्वंस कर डाला और दक्ष का सिर काटकर यज्ञकुण्ड में झोंक दिया । रुद्र के इस कोप से सब देव शोकग्रस्त हो गए । यम और रुद्र दोनों ही के सहायक सब दैत्य , असुर और दानव थे तथा हाल ही में देवासुर - संग्रामों में वे उनसे हार चुके थे। इसके अतिरिक्त देव उनको आत्मीय भी मानते तथा दबते थे। अतः रुद्र को उन्होंने समझा-बुझाकर बड़ी कठिनाई से शान्त किया । पर प्रिय पत्नी की अपमृत्यु से रुद्र