1. तिल -तंदुल कज्जल - कूट के समान गहन श्यामल , अनावृत , उन्मुख यौवन , नीलमणि - सी ज्योतिर्मयी बड़ी- बड़ी आंखें , तीखे कटाक्षों से भरपूर -जिनमें मद्यसिक्त , लाल डोरे ; मदघूर्णित दृष्टि , कम्बुग्रीवा पर अधर बिम्ब- से गहरे लाल , उत्फुल्ल अधर , उज्ज्वल हीरकावलि - सी धवल दन्तपंक्ति , सम्पुष्ट, प्रतिबिम्बित कपोल और प्रलय - मेघ - सी सघन , गहन , काली , धुंघराली मुक्तकुन्तलावलि, जिनमें गुंथे ताज़े कमल - दल - शतदल , कण्ठ में स्वर्णतार- ग्रथित गुंजा माल ; अनावृत , उन्मुख, अचल यौवन - युगल पर निरन्तर आघात करता हुआ अंशुफलक , मांसल भुजाओं में स्वर्णवलय और क्षीण कटि में स्वर्णमेखला; रक्ताम्बरमण्डित सम्पुष्ट जघन -नितम्ब , गुल्फ में स्वर्ण- पैंजनियां , उनके नीचे हेमतार - ग्रथित कच्छप चर्म - उपानत् आवृत चरण -कमल । सद्य : किशोरी । नृत्य कर रही थी चतुष्पथ पर । विषधर भुजंगिनी के समान दोनों अनावृत भुज मृणाल हवा में लहरा रहे थे। उंगलियां , चर्मटिका खंजरी पर मृद् आघात कर चरणाघात के सम पर ध्वनित कर रही थीं । चारों ओर आबाल -वृद्ध; नर - नागर , नर -नाग , देव - दैत्य गन्धर्व-किन्नर - असुर - मानुष , आर्य-व्रात्य । बहुत देर तक वह नृत्य करती रही, गाती रही, हंसती रही , हंसाती रही, लुभाती , रिझाती रही । सभीनर -नाग , देव - दैत्य , असुर -मानुष, आर्य- व्रात्य विमोहित हो उस कज्जल कूट गहन श्यामल अनावृत उन्मुख यौवन के विलास को देख हर्षोन्मत्त हो गए। नृत्य की समाप्ति पर बालिका पर स्वर्ण- खण्ड बरसाने लगे। किसी ने आंखों से पिया वह रूप -ज्वाल , किसी ने हंसकर आत्मसात् किया उसे , किसी ने स्वर्णदान देते हुए स्पर्श किया उसका कमल- कोमल करतल । किसी पर उसने भूपात किया , किसी पर कटाक्षपात । किसी पर बंकिम दृष्टि दी और किसी को देखकर हंस दी । स्वर्ण- खण्ड कमर में बांधे चर्मकोष में रखे, और स्वर्ण-पैंजनियों को कच्छपचर्म उपानत् पर किंकिरित करती हुई वह चली मद्य की हाट पर । बहुजन विमोहित -विमूढ़ हो उस उन्मत्त अनावृत उन्मुख यौवन को आंखों से पीते आगे-पीछे इधर - उधर चले । मद्य की हाट पर जाकर उसने पीठ- पुरुष से कहा - “ दे मद्य ! " “ ला स्वर्ण। ” " कैसा स्वर्ण? " " वह, जो अभी चर्मकोष में बांधा है। " " वह तो मातृ- चरण के लिए है। " " तो मद्य यहां कहां है ? " " इन भाण्डों में क्या गरल है ? " “स्वर्ण जो नहीं देते उनके लिए गरल है। "
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