पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१५७

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स्थापना फेगगी शैल पर हुई थी । इनकी उपासना - विधि मिस्रवासियों से मिलती - जुलती थी । पहाड़ पर, जंगल में , बड़े वृक्ष के नीचे यहूदियों ने लिंग और बछड़े की मूर्ति स्थापित की थी । उसे वे बाल नाम से पूजते थे। वेदी के सामने धूप देते और लिंग के सामने वाले वृषभ नन्दी को हर अमावस्या को पूजा चढ़ाते थे। मिस्र के ओसिरिस के लिंग के सामने भी बैल रहता था । - अरब में मुहम्मद के प्रादुर्भाव से पूर्व लात नाम से लिंग - पूजन होता था । इसी से पच्छिमी लोगों ने सोमनाथ के लिंग को भी ‘ लात कहा है। ‘ लात की मूर्तियां दोनों जगह बहुत विशाल और रत्न - जटित थीं । कहते हैं कि वह लिंग पचास पोरसा ऊंचा एक ही पत्थर का था । संभव है , इस विराटकाय लिंग के ‘ लात नाम पर ही विजय स्तम्भों को लाट का नाम दिया गया - जैसे कुतुब की लाट । यह भी सम्भव है कि ये विजय - स्तम्भ उसी देवता लात के प्रतीक हों । कोषकार रिचर्डसन का कहना है कि लात अल्लाह की सबसे बड़ी पुत्री का नाम था और उसकाचिह्न व मूर्ति लिंग की आकृति की थी । पाठकों को यह न भूलना चाहिए कि अल्लाह, इलाही , इलोई प्राचीन वरुणदेव के ही नाम हैं । मक्का के काबे में जो लिंग है, उसका भविष्यपुराणकार मक्केश्वर के नाम से उल्लेख करता है । यह एक काले पत्थर का लिंग है , जिसे मुसलमान संगे- असवद कहते हैं । पहले इसराइली और यहूदी इसकी पूजा करते थे। मुहम्मद के जीवन - काल में इसकी पूजा पण्डों के चार कुल करते थे। फ्रांस में भी प्राचीन काल में लिंग - पूजा का प्रचलन था । वहां के गिरजों और म्यूजियमों में लिंग के पत्थर स्मारक की भांति रखे हैं । पाश्चात्य देशों में लिंगची एक सम्प्रदाय ही था , जिसे फालिसिज्म कहते थे। भारत में भी दक्षिण में लिंगायत सम्प्रदाय है । इजिप्ट - मेसिफ और अशीरिस प्रान्त - वासी नन्दी पर बैठे हए , त्रिशुलहस्त और व्याघ्र - चर्मधारी शिव - मूर्ति की पूजा बेलपत्र से तथा अभिषेक दूध से करते थे। बेबीलोन में एक हज़ार दो सौ फीट का एक महालिंग था । ब्राजील प्रदेश में अत्यन्त प्राचीन अनेक शिवलिंग है। इटली में अनेक ईसाई शिवलिंग पूजते हैं । स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो नगर में एक सुवर्णाच्छादित शिवलिंग है, जिसकी पूजा होती है । फीज़ियन्स में ‘ एटिव्स व निनवा में एषीर नाम के शिवलिंग हैं । यहूदियों के देश में भी बहुत - से प्राचीन शिवलिंग हैं । अफरीदिस्तान , काबुल, बलख, बुखारा आदि स्थानों में अनेक शिवलिंग हैं , जिन्हें वहां के लोग पंचशेर और पंचवीर नामों से पुकारते हैं । इण्डोचाइना के अनाम में अनेक शिवालय हैं । प्राचीन काल में इस देश को चम्पा कहते थे। वहां के प्राचीन राजा शिवपूजक थे। वहां संस्कृत में अनेक शिलालेख, अनेक शिवमूर्तियां तथा लिंग मिले हैं । कम्बोडिया में , जिसका प्राचीन नाम काम्बोज है तथा जावा, सुमात्रा आदि द्वीपों में भी अनगिनत शिवलिंग मिले हैं । वहां के लोग लिंग- पूजन करते थे। भारत - चीन ( इण्डोचीन ) श्रीक्षेत्र ( मध्य बर्मा), हंसावली ( दक्षिण बर्मा), द्वारावती (स्याम), मलयद्वीप आदि सर्वत्र शिवलिंग और शिवमूर्तियां पाई जाती हैं । बेबीलोनिया , मिस्र , चीन और भारत में प्राप्त शिवलिंगों को यदि ध्यान से देखा जाए तो यौन उपासना के एक अविश्वसनीय तथ्य का रहस्योद्घाटन होगा । मसीह से पूर्व से लेकर ईस्वी सन् से बहुत बाद तक भी ऐसा प्रतीत होता है कि स्त्री - पुरुष की स्वतन्त्र और