वह उसे त्याग न सकी । इतने बड़े इस साम्राज्य के अधिपति की इकलौती प्यारी बहन , भाइयों और भाभी के परम अनुरोध को भी न मानकर एकाकी उसके साथ चल दी । परन्तु जब उसने यहां आकर अश्मपुर में उसकी सामर्थ्य और वैभव देखा , तो उसने जाना कि उसका पति एक छोटा- सा राजा ही नहीं है , वह अपने कुल का अधिपति और द्वीप का स्वामी है । चलते समय रावण ने प्रिय बहन को कहा था कि संकटग्रस्त होने पर वह उसकी शरण आ सकती है , परन्तु उसने अपने घमण्ड और आत्मसम्मान के आवेश में रावण का दिया उपानय भी स्वीकार नहीं किया था । अतः अब भला वह कैसे उसकी शरणापन्न हो सकती थी ! उसने उसका एक भी अनुरोध नहीं माना था , तो अब वह कैसे अनुरोध कर सकती थी ! परन्तु मधुयामिनी सम्पन्न हुई ही नहीं और संकट का काल आ पहुंचा। रावण के सोलह सौ युद्धपोतों ने अश्मद्वीप को घेर लिया । क्षुद्रा , मध्यमा , भीमा , चपला , पटला , मया , दीर्घा, पत्रपुटा , गर्भरा , मन्थरा, तरणी, प्लाविनी, धारिणी, वेगिनी , ऊध्वा , अनूर्वा, स्वर्णमुखी आदि अनेकविध जल- नौकाओं ने अश्मद्वीप का तट घेर लिया । उन पर से शूल खङ्ग-मुद्गर - धनुष -बाणधारी योद्धा राक्षस तीर पर उतरने लगे । विद्युजिह्व सूचना पा तुरन्त ही युद्ध को सन्नद्ध हो गया । पाठक उस क्रीता दासी राक्षस -बालिका को न भूले होंगे , जो लंका में विद्युजिह्व के लिए जागरण किया करती थी । यहां वह सूर्पनखा की प्रिय सखी बन गई थी । अभी यद्यपि कुछ ही मुहूर्त का सम्मिलन था , पर दोनों ही प्रिय सखियां बन गई थीं । जब विद्युज्जिह्व युद्ध- सज्जा से सज्जित हो सूर्पनखा से मिलने आया तो उसने देखा कि सूर्पनखा और सरमा परस्पर एक - दूसरे को युद्ध- सज्जा से अलंकृत कर रही हैं । विद्युजिह्व ने हंसकर कहा- "प्रिये , यह क्या ? " उसी प्रकार हंसकर सूर्पनखा ने कहा - “रक्षेन्द्र के स्वागत की तैयारी तो मुझे ही करनी है। मैंने ही तो उसे अश्मपुरी में निमन्त्रण दिया है । मैं अपने भाई के प्रताप - स्वभाव से परिचित हूं , अतः उसका समुचित सत्कार तो मैं ही करूंगी। " " तो प्रतिष्ठिते , तू सरमा के साथ पुर की रक्षा कर ! कह, कितने योद्धा तुझे चाहिए ? ” ____ “ एक भी नहीं, हमें पुरुष योद्धा न चाहिए । हम दानव -बालाएं ही अपने नगर की रक्षा कर लेंगी। हां , हमें शस्त्र चाहिए। " __ “ वे शस्त्रागार में यथेष्ट हैं । क्या मैं तेरी सहायता के लिए कुछ सेनापति और मन्त्री नियुक्त कर दूं ? " “ नहीं, उन सबको तू ले जाकर रणस्थली में अपना शौर्य प्रकट कर , यहां हम सब यथेष्ट हैं । हमारे रहते नगर में राक्षस प्रविष्ट न हो सकेंगे। " " तो प्रिये, कुल - पुरुष तेरी रक्षा करें । मैं चला। ” “ समुद्र के दैत्य तेरी सहायता करें । जा , शत्रु -रक्त से ललाट -तिलक दे। समुद्र- तट के दक्षिण दिशा में विराट समतल मैदान था । वहीं रावण ने महासूचि व्यूह बनाकर अपनी सेना को अवस्थित किया था । व्यूह के प्रान्त - भाग से उसने सभी मामाओं को नियुक्त कर मध्य में कुम्भकर्ण को रखा तथा सेना के पृष्ठ भाग की रक्षा स्वयं
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