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पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/२२५

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“विश्वामित्र बड़े धनुर्धर हैं । वे ऋचीक के शिष्य हैं । ऋचीक की गरिमा मैं जानता हूं , परन्तु विश्वामित्र और इन बालकों ने क्या समूची राक्षस - सेना का विध्वंस कर दिया । " " ऐसा ही लज्जाजनक कांड हो गया , रक्षपति ? " “ विश्वामित्र क्या यहीं कहीं रहते हैं ? " “निकट ही काम्यवन में उनका आश्रम है । हमने उन्हें टिकने नहीं दिया । निरन्तर हमने उन पर आक्रमण किए। उनकी यज्ञ -विधि भंग की । बलात् मद्य और बलि -पशुओं की आहुति उनके यज्ञ -कुण्डों में दी । ” __ “विश्वामित्र ने विरोध नहीं किया , शस्त्र ग्रहण नहीं किया । ” “ नहीं , वे शस्त्र ग्रहण नहीं करते । दक्षिण कोसल के पराभव के बाद जब से उन्होंने ऋषिपद ग्रहण किया, तभी से वे शस्त्र ग्रहण नहीं करते हैं । " " इसी से वे इन मानव - कुमारों को ले आए। " “ इसी से । ” “ क्या नाम बताया , उनका ? " " राम, लक्ष्मण । " " इतना शौर्य है उन बालकों में ? " __ “ उन्होंने बात की बात में एक ही बाण से माता ताड़का को सौ धनुष दूर फेंक दिया और वह रक्त - वमन करके मर गई । इस पर जब मैंने और सुबाहु ने राक्षसों की सेना लेकर उन पर आक्रमण किया तो उन्होंने बड़े ही हस्त - लाघव से सारे राक्षसों को काट डाला । सुबाहु भी उसी युद्ध में खेत रहा । मेरे ये अधम प्राण किसी भांति बच रहे । सो मैं असहाय पर्वत -कन्दराओं में वन्य पशु की भांति छिपकर दिन काटता रहा और आपके आगमन की राह ताकता रहा। " _ “ अद्भुत है, अकल्पित है, श्लाघनीय है! अभिनन्दन करता हूं उन मानव -बालकों का ? अब कहां हैं वे किशोर? ” " मिथिला के सीरध्वज ने जनकपुर में अपनी पुत्री का स्वयंवर रचा है। विश्वामित्र के साथ दोनों कुमार वहीं गए हैं । " “ यह सीरध्वज क्या कोई बड़ा आर्य है ? " “ मानवों ही के वंश में हैं । " “ और उसकी वह पुत्री ? " " त्रैलोक्यसुन्दरी है, सीता उसका नाम है। सीरध्वज ने कृषि- यज्ञ द्वारा उसे प्राप्त किया था । " " तेरे वचनों से मेरी अभिलाषा उन दोनों मानव- बालकों तथा उस त्रैलोक्य- सुन्दरी सीता को भी देखने को उग्र हो उठी है । " “ आकर्षण का एक विषय भी है । " “ वह क्या ? " “ वहां एक पिनाक धनुष है। सीरध्वज का प्रण है कि जो कोई उसे चढ़ाकर बाणसंयुक्त कर सकेगा, उसी को वह त्रैलोक्यसुन्दरी पुत्री देगा । " " वहां क्या बहुत राजा आए हैं ? "