लिया है तथा उन्हें नगर से निकाल दिया है, जिससे वे दुःखित हो इस पर्वत पर बस रहे हैं । वे आपकी मित्रता - लाभ कर अवश्य प्रसन्न होंगे। अब आप यहां क्षण - भर विश्राम कीजिए, तब तक मैं जाकर उनसे निवदेन करता हूं। " यह कहकर हनुमान् चले गए । उन्होंने सुग्रीव को राम - लक्ष्मण का परिचय दिया । वहां आने का कारण भी बताया । सुनकर सुग्रीव ने राम के पास जाकर भेंट की और अग्नि स्थापना करके उनसे मैत्री स्थापित कर कहा - “ आज से हम एक हैं , मेरा - आपका सुख- दु: ख एक है। ” फिर दोनों चन्दन की लताओं पर बैठ वार्तालाप करने लगे । सुग्रीव की वार्ता सुनकर राम ने कहा - “मित्र , तू चिन्ता न कर। मैं दुरात्मा बालि का वध कर तेरी पत्नी और राज्य तुझे दिलाऊंगा। " सुग्रीव ने कहा - “मित्र, मैं भी जैसे , जहां से बन पड़ेगा , सीता का पता लगाकर आपको ला दूंगा । " इस प्रकार दोनों वचनबद्ध हो आगे की योजनाएं बनाने लगे । तब अकस्मात् स्मरण करके हनुमान् गुफा में जाकर वे वस्त्र - आभूषण ले आए जो सीता ने हरण के समय जाते हुए वहां फेंके थे। आभूषण और वस्त्र देख राम व्याकुल हो गए । उन्होंने लक्ष्मण से कहा - “ देखो सौमित्र , ये कुण्डल, ये नूपुर क्या सीता ही के हैं ? " सौमित्र ने कहा - “ आर्य, मैं इन कुण्डलों को नहीं जानता, क्योंकि मैंने कभी आर्या के मुख की ओर नहीं देखा , मैं तो इन नूपुरों को पहचानता हूं । जब मैं नित्य आर्या की पद वंदना करता था , तब इन्हें देखता था । " तदनन्तर सुग्रीव ने सारी घटना कह सुनाई। राम ने कहा - “मित्र सुग्रीव, क्या तुम अनुमान कर सकते हो कि वह दुष्ट चोर कौन है ? " " नहीं कह सकता, न मैं उसका स्थान जानता हूं । परन्तु वह कहीं निकट नहीं रहता है, ऐसा मेरा अनुमान है । फिर भी मैं शीघ्र ही उसका पता लगा लूंगा। आप चिन्ता न करें । शोक त्याग दें । महात्माओं का दु: खी होना उचित नहीं है। मुझे भी पत्नी-वियोग है, परन्तु मैं शोक नहीं करता आप भी इस संकट - काल में धैर्य धारण कीजिए । शोक से व्याकुल होकर जो धैर्य छोड़ देता है, वह मूर्ख है । शोक से मनुष्य बुद्धिहीन होकर संशय में पड़ जाता है । इसलिए आप शोक त्याग पुरुषार्थ दिखाइए । " सुग्रीव के ये सारगर्भित वाक्य सुनकर राम ने कहा- “मित्र , तूने सच्चे मित्र की भांति बात कही है। निस्संदेह तेरे जैसा मित्र मिलना दुर्लभ है । तू विश्वास रख कि मैंने जो वचन दिया है, वह पूरा करूंगा। "
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